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________________ कराता है। चार के अंक से चार गति, चार दिशायें, मूलाधार कमलदल की चार पंखुड़ियाँ, उस पर स्थित चार अक्षर, चार मात्रायें आदि की जानकारी मिलती है। णमो सिद्धाणं में ‘स' और 'ध' दोनों अक्षर संगीत के स्वर भी हैं। सा (षड़ज ) की चार श्रुतियां एवं 'ध' (धैवत) की तीन श्रुतियाँ हैं। तीन एवं चार के अंक उक्त पद में भी हैं। षड़ज स्वर अचल है, उसी प्रकार सिद्ध (साधक) भी अचल है । 'सा' का स्थान छंदोवती श्रुति पर एवं 'ध' का स्थान 'रम्या' नामक श्रुति पर है । 'छंदोवती' का अर्थ है छंदबद्ध, कवित्रि एवं छेदन करनेवाली तथा 'रम्या' का अर्थ है सुन्दर । महामंत्र, छंदवृद्ध, सुन्दर एवं डी को जागृत करनेवाला है। छंदोवती का स्थान मानव शरीर में नाभि है । इस श्रुति से पूर्व तीव्रा, कुमुद्रती, मन्दा नामक तीन श्रुतियां 'षडज स्वर' से संबंधित हैं । तीव्रा का संबंध 'मूलाधार चक्र' से है । 'छंदोवती' की ध्वनि षड़ज स्वर जो ओंकारस्वरूप 'ॐ' है, मन्दा तथा कुमुद्रनी की ध्वनियों का छेदन करती हुई तीव्रा को प्रभावित करती है। तीव्रा का अर्थ तेज एवं प्रकाश है। अत: तीव्रा के तेज प्रकाश से कुण्डलिनी जाग्रत होती है । णमोकार महामंत्र में 'णमो' शब्द का उच्चारण ओंकारस्वरूप है । 'र' हृदय तंत्री को झंकृत करता है और 'मो' मधुर ध्वनि के कारण 'ॐ' की ध्वनि को धारण कर लेता है । हिन्दी वर्णमाला का यह 25वां व्यञ्जन है। 25 का योग 2 + 5 = 7 है। सात स्वरों में सूर्य की सप्त रश्मियों का प्रभाव होने से पंचतंत्री वीणा (कायपिण्ड ) की झंकार का आनन्द साधु-संत एवं योगी प्राप्त करते हैं । सांसारिक व्यक्ति मोह-माया के चक्कर में फंसा रहने से वह मंत्र - साधना के माध्यम से क्षणिक लाभ के लक्ष्य से मंत्र का जाप करता है, उसे लाभ अवश्य होता है; पर वह पंच तंत्री वीणा की झंकार का आनन्द नहीं ले सकता । क्योंकि महामंत्र के पाँचों पद पंचतत्त्वों से सम्बन्धित हैं । सम्पूर्ण मंत्र में आकाशतत्व- 17, वायुतत्त्व-7, जलतत्त्व-5, अग्नितत्त्व - 2 और पृथ्वीतत्त्व - 4 हैं। कुछ विद्वानों ने आकाशतत्त्व की संख्या 12 मानी है। उन्होंने 'णमो' शब्द को मिश्रित कर आकशतत्त्व की संख्या एक मानी है; जबकि 'ण' और 'म' ध्वनि के रंग, वार एवं राशि पृथक्-पृथक् हैं। उपर्युक्त तत्त्वों की संख्याओं के अनुसार वीणा वाद्य पर 17 सुन्दरियों (परदे) पर सप्त स्वरों को दर्शाया जाता है। 5 का अर्थ है पंचम का तार, 2 का अर्थ जोड़े के नाद और 'म' का अर्थ मध्यम स्वर अर्थात् बाज का तार से संबंध बनाता है । अत: महामंत्र के पांचों पद तंत्री-वीणा के अनुरूप हैं । वीणा का यह बाह्यरूप नहीं है; इसका संबंध अन्तरात्मा से है । - ( साभार उद्धृत : अर्हत् वचन, वर्ष 12, अंक 2, पृष्ठ 45-48 ) सन्दर्भ 1. संगीत - रत्नाकर। 2. भारतीय श्रुति-स् - स्वर - रागशास्त्र । 3. नाद - योग। 4. ॐ नाद - ब्रह्म (मराठी पत्रिका) । 5. अमृत कलश । 6. समस्या समाधान पत्रिका । 7. संगीत - मासिक । प्राकृतविद्या [ अप्रैल-जून '2000 0039
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
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