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अन्य पदों की संख्याओं से बहुत अधिक हैं। लाभ - 1. द्वितीय पद की संख्यानुसार महामंत्र का जाप करने से मन स्थिर होगा,
धार्मिक भाव जागृत होंगे और आत्मा को शांति मिलेगी। 2. णमो अरिहंताणं द्वारा उत्पन्न संख्याओं के जाप से स्वास्थ्यलाभ, तृतीय पद
की संख्याओं का जाप करने से धन, लाभ चतुर्थ पद की संख्याओं का जाप करने से वंशवृद्धि (पुत्रलाभ) तथा पंचम पद की संख्या का जाप करने से
मोक्ष होना निश्चित है। पाँचों पदों के संख्याओं का योग क्रम 5, 4,3, 2, 7 है। इस संख्या का योग 21 = 2 + 1 = 3 बनता है। 3 का अंक द्वितीय पद एवं पंचम पद की संख्या के मध्य में है। पंचम पद की संख्या में 3 का अंक तीन स्थानों पर है। उनका अक्षर तीन-तीन अंकों की दूरी पर है। अत: इस अंक का महत्त्व अंकन-प्रणाली में सर्वाधिक है। ___ महामंत्र के अक्षर संख्याओं में एक से पाँच के अंक हैं। प्रत्येक पद का प्रथम एवं अंतिम अंक भी पाँच ही है। पाँच की संख्या में पाँच तत्त्व, महामंत्र के पाँच पद, पंच परमेष्ठी, पंच तंत्री-वीणा, पाँच प्रकार की वायु, पाँच देवी-देवताओं आदि की जानकारी मिलती है।
तीन का अंक द्वितीय एवं पंचम पद के अतिरिक्त अन्य पदों की संख्याओं में नहीं है। सबसे कम एवं सबसे अधिक संख्या वाले इन पदों के अंकों द्वारा ध्वनि-शक्ति से कोमलता एवं मधुरता-संबंधी जानकारी मिलती है, उस पर आगे प्रकाश डाला जा रहा है।
प्रत्येक अक्षर में तीन प्रकार की ध्वनियाँ पायी जाती हैं— उदात्त, अनुदात्त एवं स्वरित । ध्वनियों के आधार पर उन ध्वनियों के गुण, स्वभाव, प्रमाणादि की जानकारी मिलती है। उन ध्वनियों का संख्याओं से भी सम्बन्ध हैं। कोमल ध्वनि का जब प्रयोग किया जाता है, तब उक्त ध्वनि के अन्तराल में संवादात्मक ध्वनि के सहयोग से मधुर ध्वनि (स्वयंभू-नाद) उत्पन्न होती है। उक्त ध्वनि को योगी ही सुनते हैं, जिसे अनाहत नाद कहा जाता है। अक्षरांक विधि के आधार पर महामंत्र का द्वितीय पद विशेष महत्त्वपूर्ण है। पद की संख्या - 55345 का योग 22 है। ___ नाद-विशेष अर्थात् समुधुर नाद की बाईस ध्वनियाँ मानव के शरीर (कायपिण्ड) में बाईस नाड़ियों में स्थित है, जिन्हें 'श्रुति' कहते हैं। उन श्रुतियों को तीन भागों में विभाजित कर उन पर संगीत के सप्त स्वरों को मनीषियों ने स्थापित किया है। संगीतकला का प्रभाव श्रुतियों के स्वभावानुसार होता है।
महामंत्र के प्रत्येक पद के अक्षरों को प्रभावित करने का कार्य 'श्रुति' करती है। 'नाद' का यह सूक्ष्म स्वरूप 'अनाहत नाद' से संबंध स्थापित कराता है। उक्त पद में 'तीन' का अंक मध्य स्थान पर है। यह अंक तीन लोक, संगीत के तीन ग्राम (षड़ज, मध्यम, गंधार ग्राम), तीन लय, तीन नाड़ियाँ (इड़ा, पिंगला, सुषुप्ता) आदि की जानकारी
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प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000