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________________ अनुसन्धित्सु - जनानां प्राकृतवाच: करस्थदीप इव । दधती पर: प्रकाशं 'प्राकृतविद्या' चिरं जयतात्।। 7।। अर्थः— अनुसन्धाताओं तथा प्राकृत बोलने वाले व्यक्तियों के हाथ में लिये हुये दीप के समान श्रेष्ठ प्रकाश को धारण करती हुई यह 'प्राकृतविद्या' निरन्तर उत्कर्षशालिनी हो । आबाल्याज्जिनवाणीरक्तं चेतो मदीयमधुनापि । रमयन्ती हृद्येयं ‘प्राकृतविद्या' चिरं जयतात् ।। 8 ।। अर्थ:- बालकों से जिन तक की वाणी से अनुरक्त मेरे चित्त को इस समय आनन्द प्रदान करती हुई यह 'प्राकृतविद्या' निरन्तर उत्कर्षशालिनी हो । - (हिन्दी अनुवाद : डॉ० सन्तोष शुक्ल, नई दिल्ली) आंवला, अनेक रोगों की एक दवा आंवला को आयुर्वेद में 'अमृतफल' या 'धायीफल' के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि आंवला 'धाय' अर्थात 'नर्स' की भाँति मनुष्य का पालन-पोषण करता है । वैज्ञानिक विश्लेषणों से पता चलता है कि आंवले में जितने रोग नाशक, रक्तशोधक, आरोग्य - वर्धक तथा पौष्टिक तत्त्व होते हैं, उतने किसी अन्य फल में नहीं पाये जाते हैं । महर्षि चरक के अनुसार “विश्व की ज्ञात औषधियों में आंवले का स्थान सर्वोपरि है । " | आंवला का वानस्पतिक नाम 'फाइलैन्थस इम्बिलिका' है । वनस्पति विज्ञान इसे पुष्पधारियों के एक द्विबीजपत्री कुल 'युफोरबियेसी' के अन्तर्गत मानता है। आंवला विटामिन 'सी' का भण्डार है। इसकी प्रति 100 ग्राम मात्रा में 600 मिलीग्राम विटामिन 'सी' होता है, जो कि सुखाने या उबालने से नष्ट नहीं होता है। आंवले से प्राप्त विटामिन 'सी' नींबू, संतरा, केला, टमाटर आदि की अपेक्षा अधिक उत्तम माना जाता है। एक आंवले में बीस संतरों के बराबर विटामिन 'सी' का होना वनस्पतिशास्त्रियों के लिए अचरज की बात है । इसमें 0.5% प्रोटीन, 0.1% वसा, 0.75% कैल्शियम, 0.02% फास्फोरस और 1.2% लौहतत्त्व पाये जाते हैं। इसमें अम्ल और कषाय रस की अधिकता के कारण यह पाचक और संग्राहक होता है। आंवले में पाये जाने वाले अम्लरस की प्रमुख विशेषता है कि यह शरीर की किसी झिल्ली को कोई हानि नहीं पहुँचाता है । इसीलिए इसका सेवन भोजन से पहले, भोजन के साथ और भोजन के बाद सुविधाजनक कभी भी किया जा सकता है। आंवले को चबाकर खाने से दांतों में 'पायरिया रोग' नहीं होता है। कच्चे हरे आंवले को बारीक काटकर मिश्री के साथ खाने से पेट के रोगों में लाभ मिलता है। हरे आंवले के नियमित सेवन से कफ दूर हो जाता है, खून की गर्मी शान्त होती है और हड्डियां मजबूत होती हैं। आंवले का सेवन गाय के दूध साथ करने से नेत्र के रोगों से मुक्ति मिलती है। आंवले का उबटन यदि नियमित रूप से प्रयोग किया जाये, तो त्वचा में प्राकृतिक निखार और लावण्य आता है । मस्तक पर आंवले के चूर्ण का लेप करने से सिरदर्द में आराम मिलता है। आंवले का सेवन हृदय रोगों में फायदा पहुँचाता है और 'यकृत' को ताकत देता है । प्राकृतविद्या— अप्रैल-जून '2000 00 17
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
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