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________________ 5. डॉ० आर०एस० सैनी, नई दिल्ली : कातन्त्र व्याकरण का संपादन- अनुभव । (सेवानिवृत्त रीडर, दिल्ली विश्वविद्यालय) 6. प्रो० धर्मचन्द्र जैन, कुरुक्षेत्र : कातन्त्र व्याकरण और उसकी उपादेयता । (प्रो० कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ) इनमें डॉ० राजाराम जैन का आलेख अपने प्रतिपाद्य ग्रंथ की सूचना एवं डॉ० सुषमा सिंघवी का आलेख विषय- प्रस्तुतीकरण दृष्टि से अधिक चर्चित रहे। इस सत्र का संचालन प्रो० प्रेमसुमन जैन ने किया । • अपराह्न 3.00 बजे से 5.30 बजे तक 'समापन सत्र' संगोष्ठी के 'समापन सत्र' की अध्यक्षता विद्ववर्य प्रो० प्रेमसिंह, नई दिल्ली ने की। इस सत्र कुल 3 शोध-आलेख पढ़े गये और उन पर विशद चर्चा हुई। पठित आलेखों के प्रस्तोता विद्वान् एवं आलेख - विषय निम्नानुसार हैं 1. प्रो० अश्विनी कुमार दास, नई दिल्ली :― (प्रो० ला०ब०शा०रा०सं० विद्यापीठ, नई दिल्ली) 2. डॉ० रमेशचन्द्र जैन, बिजनौर पाणिनीय व्याकरण और कातन्त्र व्याकरण का तुलनात्मक वैशिष्ट्य । : कातन्त्र व्याकरण : पाणिनीय व्याकरण के आलोक में । : कातन्त्र व्याकरण का पालि - व्याकरणों पर प्रभाव । ( रीडर, केन्द्रिय संस्कृत विद्यापीठ, लखनऊ ) इनमें प्रो० अश्विनी कुमार दास का आलेख अपने प्रतिपाद्य विषय के वैशिष्ट्य एवं डॉ० विजय कुमार जैन का आलेख तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से अधिक चर्चित रहे। इस सत्र का संचालन डॉ० सुदीप जैन ने किया । संगोष्ठी के अन्त में संयोजक डॉ० सुदीप जैन ने सभी विद्वानों की ओर से निम्नलिखित संस्तुतियाँ सर्वसम्मति से प्रस्तुत कीं (1) कुन्दकुन्द भारती संस्थान द्वारा आगामी दो वर्षों के अन्दर कातन्त्र - व्याकरण विषयक एक वृहद् राष्ट्रिय संगोष्ठी का आयोजन पुनः किया जाने का निश्चय व्यक्त किया । (2) श्री कुन्दकुन्द भारती प्रांगण में शीघ्र ही निर्मित कराये जाने वाले सम्राट् खारवेल भवन नामक पुस्तकालय में कातन्त्र व्याकरण विषय स्वतंत्र कक्ष की स्थापना की जाय, जिसमें देश-विदेश में उपलब्ध सभी कातन्त्र सम्बन्धी पाण्डुलिपियों की मूल अथवा माइक्रोफिल्मिंग प्रतिलिपियों, प्रकाशित सामग्री की न्यूनतम एक - एक प्रति का संग्रह किया जाये । (3) कातन्त्र-व्याकरण के बहुआयामी शोध परक मूल्यांकन हेतु एक 'कातन्त्र-परिषद्' की स्थापना का संकल्प व्यक्त किया गया, जिसका उद्देश्य कातन्त्र व्याकरण विषयक बहुआयामी शोध कार्य की रूपरेखा बनाना एवं उसे क्रियान्वित करके उसका प्रकाशन कराना होगा । ( अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, जैन कॉलेज, बिजनौर) 3. डॉ० विजय कुमार जैन, लखनऊ : (4) ‘पाणिनीकालीन भारतवर्ष' की पद्धति पर 'कातन्त्रकालीन भारत' नामक एक बहूपयोगी शोधपरक ग्रन्थ की रचना की जाये, जिसमें भारतीय इतिहास, संस्कृति तथा उसके प्राकृतविद्या�अप्रैल-जून '2000 ☐☐ 107
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
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