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संस्करण : प्रथम संस्करण 2000 ई० (पॉकेट बुक साईज़, पेपरबैक,
107 पृष्ठ) कुन्दकुन्द भारती संस्थान द्वारा प्रकाशित साहित्य को विभिन्न भाषाओं में अनूदित कर प्रकाशित किया जा रहा है, यह इस संस्था के द्वारा प्रकाशित साहित्य की उपादेयता को सूचित करता है, साथ ही अन्य प्रकाशकों के सौमनस्य को भी ज्ञापित करता है।
इस लघु पुस्तिका में आचार्यश्री विद्यानन्द मुनिराज के द्वारा मुनि-अवस्था में की गई हिमालय यात्रा का वृत्तान्त प्रस्तुत हुआ है। यद्यपि यह विवरण हिन्दी भाषा में विगत 25 वर्षों से कई संस्करणों में प्रकाशित हो चुका है, तथा देशभर में इसकी कई हजार प्रतियाँ पहुँच चुकी हैं; किन्तु मराठी भाषा में इसका यह प्रथम प्रकाशन है, इससे मराठी भाषा-भाषी जिज्ञासुओं के लिये जैनमुनि की चर्या एवं सूक्ष्म तत्त्वज्ञान के बारे में उपयोगी जानकारी उपलब्ध होगी।
इसका सम्पादन, मुद्रण एवं प्रकाशन स्तरीय है। इस उपयोगी कार्य के लिए विद्वान् लेखक एवं प्रकाशक -दोनों ही धन्यवाद के पात्र हैं।
–सम्पादक **
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पुस्तक का नाम : जिनवाणी का निर्झर लेखक : दुलीचन्द जैन साहित्यरत्न वितरक : जैन इंडस्ट्रियल कॉर्पोरेशन, 70, सेम्बुदोस स्ट्रीट, चेन्नई-600 001 मूल्य : पच्चीस रुपये, (गुटका साईज़, पेपरबैक, 149 पृष्ठ) संस्करण : प्रथम संस्करण 2000 ई० ___ इस कृति में नीतिपरक अनेकों सूक्तियां हिन्दी में अंग्रेजी-अनुवाद-सहित प्रकाशित की गई हैं। इनकी विशेषता यह है कि इनमें सांप्रदायिक संकीर्णता का अभाव है, तथा दार्शनिक गूढ़ता भी प्राय: नहीं है; सीधे सरल शब्दों में नीति एवं सदाचार की ज्ञानवर्धक सामग्री इसमें एकत्रित की गयी है।
इसका सम्पादन, मुद्रण एवं प्रकाशन स्तरीय है। तथा समग्र रूप से यह प्रयास स्तुत्य है। इस श्रेष्ठ कार्य के लिए विद्वान् लेखक एवं प्रकाशक -दोनों ही साधुवाद के पात्र हैं।
–सम्पादक **
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प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000