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प्रख्यात भाषाशास्त्री डॉ० हरिवल्लभ भायाणी के द्वारा इसकी प्रामाणिक भूमिका, अनुवाद, मूलपाठ की शुद्धि अपेक्षित टिप्पण एवं विशिष्ट शब्दों की सूची के साथ-साथ सन्दर्भ-ग्रंथों की सूची देकर इस लघु कृति पर अच्छा शोधकार्य प्रस्तुत किया है। ___ बोलचाल की भाषा में जिसे 'बारहखड़ी' कहा जाता है, उसे आधार बनाकर इसमें जैनतत्त्वज्ञान को संक्षिप्त दोहों के रूप में पिरोकर मनोहारी प्रस्तुति की गई है। अपभ्रंश भाषा की इस उपयोगी कृति के उद्धार के लिये डॉ० हरिवल्लभ भायाणी एवं अपभ्रंश साहित्य अकादमी —दोनों ही साधुवाद के पात्र हैं। इसका सम्पादन, मुद्रण एवं प्रकाशन स्तरीय है। तथा समग्र रूप से यह प्रयास स्तुत्य
–सम्पादक **
(5) पुस्तक का नाम : हमारे पूर्वज हमारे हितैषी संकलन . : सुबोध कुमार जैन संपादन : जुगल किशोर जैन प्रकाशक : श्री जैन सिद्धान्त भवन, देवाश्रम, आरा-802301 (बिहार) मूल्य : पच्चीस रुपये, (डिमाई साईज़, पेपरबैक, 140+10=150 पृष्ठ) संस्करण : प्रथम संस्करण 2000 ई०
जैनसमाज में अनेकों ऐसे यशस्वी परिवार हुये हैं, जिनकी परम्परा में सामाजिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय कार्य सम्पन्न हुये। ऐसा ही एक परिवार देवाश्रम परिवार' के नाम से प्रसिद्ध है। जैन सिद्धान्त भवन, आरा' इसी परिवार की एक ऐसी यशस्वी प्रस्तुति है, जिससे आज विश्वभर के विद्यानुरागी सुपरिचित हैं।
उच्च चारित्रिक मूल्यों एवं नैतिक परम्पराओं के पोषक इस परिवार के द्वारा विगत चार पीढ़ियों से जैनसमाज के साथ-साथ संपूर्ण राष्ट्र की जो महनीय सेवा की गई है, उसकी विनम्र एवं संक्षिप्त प्रस्तुति इस पुस्तक में तथ्यात्मक रूप से हुई है। इससे हम अपने देश एवं समाज के यशस्वी पूर्वजों के आदर्शों और कार्यशैली की प्रेरणा अपने जीवन के लिये ले सकते हैं, तथा उन आदर्शों को अपनाकर राष्ट्र और समाज को सर्वविध उन्नति के मार्ग पर ले जा सकते हैं।
पाण्डुलिपियों के संरक्षण, पुरातात्त्विक महत्त्व की कलाकृतियों की सुरक्षा तथा स्तरीय उपयोगी साहित्य के प्रकाशन के कारण यह परिवार विशिष्ट शिक्षा-प्रेमियों के द्वारा भी बहुमानित रहा है। शैक्षिक संस्थाओं के निर्माण तथा सफल संचालन का यशस्वी इतिहास इस परिवार के साथ जुड़ा हुआ है।
आशा है, देश-विदेश के प्रत्येक स्तरीय पुस्तकालय में तथा शिक्षण-केन्द्रों में इसकी प्रति अवश्य उपलब्ध कराई जायेगी, साथ ही देशभर के प्रत्येक जैन-मंदिर में भी इसे भेजा
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प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000