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________________ अपेक्षित सुधार भी दृष्टिगोचर होगा । इसका मुद्रण एवं प्रकाशन स्तरीय है, तथा समग्ररूप से यह प्रयास स्तुत्य है । -सम्पादक ** (3) पुस्तक का नाम : शौरसेनी प्राकृत और उसका साहित्य लेखक प्रकाशक मूल्य संस्करण प्रो० (डॉ०) राजाराम जैन श्री कुन्दकुन्द भारती ट्रस्ट, नई दिल्ली : दस रुपये, (डिमाई साईज़, पेपरबैक, 48 पृष्ठ) : प्रथम संस्करण 2000 ई० इस लघु पुस्तिका में श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली में चल रही 'आचार्य कुन्दकुन्द स्मृति व्याख्यानमाला' के पांचवें सत्र में प्रदत्त शौरसेनी प्राकृतभाषा और साहित्य विषयक व्याख्यानों का आलेख रूप में संकलन कर संपादित एवं प्रकाशित किया गया है। इसमें विद्वान् लेखक ने शौरसेनी प्राकृत की परम्परा के प्रामाणिक बोध के साथ-साथ शौरसेनी प्राकृत के साहित्य की भी प्रभावी झलक प्रस्तुत की है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि न केवल शौरसेनी प्राकृतभाषा, अपितु उसका साहित्य भी बहुआयामी एवं व्यापक प्रसारक्षेत्र वाला था । इसके प्रारम्भ में विद्यापीठ के माननीय कुलपति प्रो० वाचस्पति उपाध्याय का प्रभावी 'प्राक्कथन' एवं विषयानुसारी जानकारियों से समन्वित डॉ० सुदीप जैन की 'प्रस्तावना' भी उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करते हैं । : इसका सम्पादन, मुद्रण एवं प्रकाशन स्तरीय है। तथा समग्र रूप से यह प्रयास स्तुत्य है । इस श्रेष्ठ कार्य के लिए विद्वान् लेखक एवं प्रकाशक - दोनों ही साधुवाद के पात्र हैं 1 - सम्पादक ** (4) अनुवादक प्रकाशक : पुस्तक का नाम: बारहक्खर - कक्क लेखक मूल्य संस्करण : महमंद मुि : हरिवल्लभ भायाणी : अपभ्रंश साहित्य अकादमी, श्रीमहावीरजी (राज० ) : पच्चीस रुपये, (डिमाई साईज़, पेपरबैक, 96 पृष्ठ) : प्रथम संस्करण 2000 ई० इस लघु पुस्तिका में श्री महयंद मुणि द्वारा विरचित 'बारहक्खरिय' एवं 'दोहा-वेल्ली' नामों से प्रसिद्ध 'बारहक्खर - कक्क' नामक कृति का सम्पादन एवं अनुवाद करके प्रकाशन किया गया है । प्राकृतविद्या + अप्रैल-जून 2000 097
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
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