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में अग्रणी बनते हैं, वे भी अपनी उन उक्तियों पर आचरण कहाँ करते हैं? बादल खेती झुलसा रहे हैं
तीर्थंकर पंचकल्याणक-महोत्सव में जिन-जन्म-कल्याणक प्रकरण में कलशाभिषेक से पूर्व सवत्सधेनु की प्रतिष्ठातिलक' में उपस्थितिकरण-विधि है। जिन-जन्म-कल्याणक में उपस्थित की जाने वाली गौ को महीने भर छना हुआ पानी और सूखा चारा दिया जाता है और पूर्ण अहिंसकवृत्ति से उसका पालन किया जाता है। तीर्थंकर महावीर के समक्ष सिंह
और गौ को एक पात्र में नीर पीते हुए दिखाया गया है। जहाँ स्वभावत: हिंसक प्राणी के हृदय में एक तरह से अहिंसा की स्थापना की गयी है, वहाँ अहिंसक मनुष्य ही गोरक्षा का विरोधी हो तो कहना होगा कि “बादल खेती को जला रहे हैं, बाड़ खेत को खा रही है।" 'मेघहिं बरसे तृण जले, बाड़ खेत को खाए। भूप करे अन्याय तो, न्याय कहाँ पर जाए?' इसीलिए छहढाला' में दौलतरामजी ने कहा-'धर्मी सो गोवच्छ-प्रीति-सम कर जिनधर्म दिपावे (3 ढाल, 23वाँ पद)। जैसे गौ अपने वत्स पर प्रीति रखती है, वैसे धर्म-वात्सल्य की रक्षा से धर्मी को जिनधर्म पर ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि 'न धर्मो धार्मिकैर्विना' (धार्मिकों के बिना धर्म नहीं रहता)। जैन : गो-पालन के सत्याग्रही ___धर्म को वाणी-विलास का विषय नहीं, व्यवहार का अंग बनाना आवश्यक है। 'क्षत्रचूडामणि' में जीवधर-कथा में गौरक्षा का एक सुन्दर प्रकरण जैन आचार्य वादीभसिंह ने दिया है। एक समय व्याध-जाति के लोगों ने गोपों की गायों का हरण कर लिया। गोप काष्ठांगार की राजसभा में आकर रोने-चिल्लाने लगे। राजा ने सेना को उन्हें लौटाने के लिए भेजा, परन्तु सेना पराजित हो गयी। उस समय निराशा में डूबते हुए उन गोपालों की गायों को सत्यन्धर-पुत्र जैन राजकुमार जीवन्धर ने पराक्रमपूर्वक व्याधों को विजित कर प्राप्त किया। ननन्द नन्दगोपोऽपि गोधनस्योपलम्भत:' – इससे गोपाल-कुल में हर्ष छा गया। जैन राजकुमार जीवन्धर ने गोरक्षा के लिए अपने प्राणों की परवाह नहीं की और वीरता से उन्हें बन्धन-मुक्त किया; क्योंकि क्रिया-रहित वाणी निष्फल है। जो मानव संकल्पों को क्रियाफलवान् बनाता है; वही संकल्पितों का वास्तविक दोग्धा माना जाता है। मुनियों ने वात्सल्य-भाषा का प्रयोग करते समय गौ का अनेक बार दृष्टान्त के साथ वर्णन किया है। जैन लोग गो-पूजा नहीं, परन्तु गोरक्षा और गोपालन के सत्याग्रही हैं। 'प्रजा कामदुधा धेनुर्मतान्योन्ययोजिता' –न्यायपूर्वक पालन की हुई प्रजा कामधेनु गौ समान है।
“सम्पूजकानां प्रतिपालकानां यतीन्द्रसामान्यतपोधनानाम् ।
देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञ: करोत शान्तिं भगवान् जिनेन्द्रः ।।" अर्थ: तीर्थकर वृषभदेव-महावीर जिनेन्द्र कृपया पूजा-अर्चा करनेवालों, प्रतिपालकों, यतीन्द्रों और सामान्य तपोधनों तथा देश, राष्ट्र, नगर और शासकों के लिए शान्तिकारक हों।
प्राकृतविद्या जनवरी-मार्च '2000
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