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________________ जिनधर्म-प्रभावक आचार्यश्री विद्यानन्द जी -डॉ० रमेशचन्द जैन वर्ष 1969 में बिजनौर में यह चर्चा सुनायी दी कि पूज्य मुनिश्री 108 विद्यानन्द जी बद्रीनाथ की ओर जाना चाहते हैं। उन दिनों मुनिश्री विद्यानन्द जी की कीर्ति सारे भारत में फैल चुकी थी। बिजनौर के जैन समाज के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध समाजसेवी बाबू रतनलाल जी ने पूरे जिले के गणमान्य व्यक्तियों की सभा बुलाई और सभा में उपस्थित महानुभावों ने सर्वसम्मति से निर्णय किया कि मुनिराजश्री को बिजनौर आमन्त्रित करने हेतु पूरे जिले के प्रमुख लोग सहारनपुर जायें और उनसे बिजनौर पधारने हेतु प्रार्थना करें। योजनानुसार सभी ने बिजनौर से सहारनपुर की ओर प्रस्थान किया; क्योंकि मुनिराजश्री का चातुर्मास उस वर्ष सहारनपुर में हुआ था। सभी ने पूज्य मुनिराजश्री के चरणों में विनय और भक्तिपूर्वक प्रणाम किया और प्रार्थना की कि आपका विहार चूँकि बद्रीनाथ की ओर होने जा रहा है, अत: आप बिजनौर तथा नजीबाबाद के रास्ते से ही हिमालय की ओर प्रस्थान करें।” पूज्य मुनिराजश्री ने सभी को आशीर्वाद दिया और आश्वासन दिया कि “बिजनौर तथा नजीबाबाद के रास्ते से आए, तो कम से कम 3-3 दिन का समय दोनों स्थानों को अवश्य देंगे।" पुण्ययोग से मुनिश्री का मंगलविहार बिजनौर के रास्ते से ही हुआ। बिजनौर की जैन-अजैन जनता ने मुनिश्री के स्वागत में पलक-पाँवड़े बिछा दिए। बिजनौर के प्रवासी श्रेष्ठी लाला राजेन्द्र कुमार जैन तथा उनके भाई जगत् प्रकाश जैन सपरिवार दिल्ली से बिजनौर आए तथा कई दिनों तक ठहरे। बिजनौर में महाराज श्री ने अपनी चर्या और प्रवचनों की अमिट छाप छोड़ी। उन दिनों जो उनकी धर्मसभाओं में उपस्थित थे, वे अजैन भाई तक विशेषरूप से आज भी मुनिश्री को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं। - नजीबाबाद में आदरणीय साहू शान्ति प्रसाद जी सपरिवार आए हुए थे तथा प्रतिदिन पूज्य मुनिराजश्री की धर्मसभा में अपनी धर्मपत्नी सौ० रमा जैन के साथ उपस्थित होते थे। मुनिराजश्री मूर्तिदेवी सरस्वती इण्टर कॉलेज के परिसर में ठहरे हुए थे। नजीबाबाद के बाद हरिद्वार के रास्ते वे बद्रीनाथ की यात्रा को प्रस्थान कर गए। सब जगह उन्होंने जैनधर्म की अपूर्व धर्मप्रभावना की। उस वर्ष उनका चातुर्मास श्रीनगर (गढ़वाल) में हुआ। समाचार-पत्रों में निरन्तर उनके समाचार प्रकाशित होते रहे। उनकी बद्रीनाथ यात्रा का सांगोपांग वर्णन करने वाली एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई, जो हिमालय में दिगम्बर मुनि' शीर्षक से बहुचर्चित हुई। वर्ष 1974 में देशव्यापी स्तर पर भगवान् महावीर का 2500वाँ निर्वाणोत्सव मनाया गया, जिसे मनाने में पूज्य मुनिराजश्री के मार्गदर्शन का लाभ सारे समाज को मिला। स्थान-स्थान पर केन्द्रीय और प्रान्तीय धर्मचक्रों का प्रवर्तन हुआ। केन्द्रीय धर्मचक्र प्रवर्तन प्राकृतविद्या- जुलाई-सितम्बर '99 083
SR No.521355
Book TitlePrakrit Vidya 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1999
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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