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________________ का उद्घाटन देश की लोकप्रिय प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के करकमलों से हुआ । पूज्य मुनिराज श्री की प्रेरणा से देश के मूर्द्धन्य विद्वानों का बड़ी संख्या में दिल्ली के ‘विज्ञान भवन' में समारोहपूर्वक सम्मान किया गया । विद्वानों को पूरी तरह से महत्ता प्रदान कराने और समाज के मंच से एक साथ सम्मानित करने के प्रयास में पूज्य मुनिश्री की बहुत बड़ी सूझबूझ थी । इससे विद्वानों में स्वाभिमान जागा और जिनवाणी की सेवा का अपूर्व उत्साह उनके मन में संचारित हुआ। सभी ने इस कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इसी अवसर पर नई दिल्ली में कुन्दकुन्द भारती की स्थापना की गई, जो धीरे-धीरे प्राकृतविद्या और जैनधर्म के प्रचार-प्रसार का महत्त्वपूर्ण केन्द्र बनता जा रहा है। 1981 में गोम्मटेश्वर बाहुबलि की मूर्ति स्थापना का सहस्राब्दी वर्ष समारोह विशाल स्तर पर मनाया गया, जिसमें पूज्य मुनिश्री पधारे और उनके सत्प्रयास से समाचार माध्यमों द्वारा देश, विदेश में महोत्सव को अच्छी ख्याति मिली। देश के प्रमुख मुनिगण भी इन दिनों श्रवणबेल्गोला पधारे और वहाँ अभूतपूर्व मुनि-सम्मेलन इस बीसवीं सदी का आयोजित हुआ। उपस्थित मुनि - समुदाय ने एकमत से कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए, जिनका देशभर में व्यापक प्रचार हुआ। महोत्सव के अवसर देश की प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी भी पधारीं और उन्होंने मुनिश्री का आशीर्वाद लेकर अपने को धन्य माना । जब समारोह मनाकर वे दिल्ली वापिस लौटीं, तो संसद भवन में कुछ लोगों ने उन पर व्यंग्योक्तियों का प्रयोग किया कि “क्या आप जैन हो गयी हैं?” श्रीमती इंदिरा गाँधी ने उन्हें जवाब दिया कि “मात्र वे ही क्या सारा भारत राष्ट्र जैन है; क्योंकि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी इस धर्म के सिद्धांतों से प्रभावित थे और आज समूचा भारत राष्ट्र भगवान् महावीर के अहिंसा सिद्धान्त तथा उनके बतलाये हुये मार्ग पर चल रहा है । " 1983 ई० में कुम्भोज बाहुबली क्षेत्र पर कुछ लोगों ने उपद्रव किया। पूज्य मुनिराज श्री ने अहिंसक प्रतीकार द्वारा उनका डटकर मुकाबला किया और इसप्रकार एक समूचे क्षेत्र को उपद्रवियों के हाथों में जाने से रोका तथा उसका पर्याप्त विकास कराया । 1985 ई० में इन्दौर में गोम्मटगिरि तीर्थ का निर्माण मुनिश्री की पावन सन्निधि में हुआ। आज यह देश का एक दर्शनीय तीर्थ बन गया है। पूज्य मुनिश्री विद्यानन्द जी की प्रेरणा से वर्ष 1985-87 को 'शाकाहार, सदाचार और श्रावकाचार वर्ष' के रूप में मनाया गया। 1988 ई० में आचार्यश्री विद्यानन्द जी की प्रेरणा से 'आचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दी वर्ष' के रूप में सारे देश में मनाया गया। बड़वानी में विशालकाय भगवान् ऋषभदेव की प्रतिमा का क्षरण हो रहा था। भूस्खलन, पानी के रिसाव आदि से प्रतिमा के अस्तित्व पर ही संकट आ रहा था । प्रतिमा पर आए इस संकट को दूर करने हेतु विविध उपाय किये गये और 1989 ई० में ‘बावनगजा महामस्तकाभिषेक' का कार्यक्रम जोरो-शोरों से हुआ । ☐☐ 84 प्राकृतविद्या�जुलाई-सितम्बर 199
SR No.521355
Book TitlePrakrit Vidya 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1999
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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