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प्राकृतस्याश्रयमहाकाव्यम्
कीइ वि किलन्त-कम-विप्पव-हरणा मल्लिआण मालाओ । महु-सुक्क-पक्ख-जुण्हा-पव व्व उप्पाविआ गयणे ॥५२॥ गुम्फन्ती जव-दामं भविअ-सिआवाइ-चेइअ-निमित्तं । का वि जुवई जुवाणय-मण-थेरिअ-चोरिअमकासि ॥५३॥ सिविणम्मि वि अइदुलहा सिणिद्ध-कुसुमा सणिद्ध-मयरन्दा । परिमल-णिद्धा कीइ वि रइआ वासन्तिआ-माला ॥५४॥ .. कण्ह-कसिणालि-कसणा लवली गन्धारिहा वि नोच्चिणिआ । केण वि कज्जल-कण्हं सुमरिअ कबर पिअयमाए ॥५५॥ अणरह अणरुह-दामं रे मुक्ख-मुरुक्ख करसि इअ भणिउं । पोम्मच्छीए हणिओ को वि पिओ पाय-पउमेण ॥५६।। छउमेण अछम्मेण य साम-दुवारेण दण्ड-वारेण । केण वि का वि अगेज्झा बउलेहि पसाइआ तणुवी ॥५७॥ गरुवीओ लवलीओ सुहुमे वत्थे सुरुग्घजे खित्ता । कीए वि हु मुद्धाए सुवे विहसिरा वि कलिआओ ॥५८।। कुसुमाकर-रिउ-स-जणा सुवे जणा पारिजाय-तरुणो व्व । सर-जीआभालि-कुला सर-ठग-वाणारसि-पएसा ॥५९॥ आणाल व्व कणेरूहि कुरवया दढयरं समालिद्धा । वर-विलयाहि अहरिआचलपुर-मरहट्ठ-जुवईहिं ॥६०॥ लवणिम-जल-द्रह निह-नाहि-मण्डले उच्चिणेसु लहुअमिमं । हलिआर-गोरि हरिआल-वनयं हलुअममिलायं ॥६१॥ वण-सिरि-णडाल-तिलयं तिलयं गेय्हं तए वर-णलाडे । गेज्झाथोव-परिमलं अथोक्क-जहणे अथेव-सिरि ॥६२॥ दाही अथोअ-कुसुमेहि सेहरं दिट्ठिएह बिम्बोट्ठि । धूआ-बहिणी-भइणी-दुहिअ व्व तुह प्पिआ लवली ॥६३॥ . छूढासव-गण्डूसे खित्त-पउत्ताडणे समुच्चिणसु । पुप्फाइँ बउल-वच्छे असोअ-रुक्खे अ विलय-वरे ॥६४|| सुर-वणिआ-नाग-त्थी-अकूर-कय-हरिसमीसि-उल्लसिअं। पिच्छेत्थी-धिइ-जणइं दिहि-मइ हिन्ताल-मंजरिअं ॥६५।।
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