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________________ प्राकृतद्वयाश्रयमहाकाव्यम् मज्झण्हतरू मज्झण्ण-पुप्फ- जीविअ - दसार - वइ - पुत्तो । महु - जुव-मंसु - सरिच्छालि-गुच्छओ आसि मण -हरणो ॥ ३८ ॥ हरि अन्द - रुप्पि - सरिसाण वि पहिआणं वणं मसाणं व । रत्ती अराई विकसिण - पलासेहि खोहयरं ॥ ३९॥ मुच्छिर-सरा कय-गुणक्खाण व्व अविग्घ-कट्ठमहु- पाणे । नीसास - निज्झरा इव चउ-कट्ठे सिसिर - सिरि- मुक्का ॥४०॥ निब्भर - महद्धि-गन्धे वण- सिरि- गुप्फत्थ - नील- मणि-निउरा । अच्छि - पडिक्खण-मज्झे अवुड्ड- बउले गया अलिणो ॥४१॥ भसलालिद्ध-पसत्थोग्गय - पुप्फो आसि कामि - भिब्भलणो । दिग्घामोओ दीहं ऊससिअ - रईस सिरिसो ॥४२॥ वम्मह-तंस-सरोवम-संझा-सुन्देर- हारि - कुंपलओ । विहलिअ - पहिओ धट्ठज्जुण - भाउ - समे वि कामकरो ||४३|| कणिआर-तरू नव - कण्णिआर-सुन्देर-दरिअ - सब्भावो । हर - खन्द - जुग्ग- कुसुमो जाओ रंजिअ - हर- क्खन्दो ||४४ || पिअ - कुसुम- पयर - पूरिअ - कुसुम-प्पयरो पमुक्क-मेर - सिरी । तेल्ल-सणिद्धालि-कुलापम्मुको आसि वेइल्लो ||४५॥ कोल्ला-सोत्त-पडिच्छन्दीकय-रय - सेव्व- घम्म - सलिलाण । पुप्फअ-लवली जाया सेवा - जुग्गा मयच्छीणं ॥४६॥ महु-नक्ख - आउह- नह व्व आसि सारंगि- वत्थ - कन्तीइं । छमरुह-रयण-पलासे कुसुमाइँ सलाह-पत्ताइं ॥४७॥ जुव - जण - जणिअसणेहा पउत्थ - विरहागणिम्मि णेह - समा । मयण- पयावग्गि- णिहा पलक्ख - तरु- पल्लवा जाया ॥४८॥ सिरि-नन्दण - किरिआरिह - तरुणीहिं चइअ - कसिण - हिरिआहिं । अह कुसुमावचय-कलाओं दंसिआ दिट्ठिआ भणिउं ॥४९॥ वासेणं वरिसेहि विनाऽमरिसो किर पियाइ जो गमिही । सो दरिसिअ - नव-चूए पिए गओ झत्ति हरिस - वसा ॥५०॥ मयण-वइरग्गि-तत्तेण तोसिआ सुदढ - माण - तविअ - पिआ । कवि वज्ज- कढण - हिअया केण वि दाउं बउल-दामं ॥५१॥ ७२
SR No.521039
Book TitleNandanvan Kalpataru 2017 11 SrNo 39
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtitrai
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year2017
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Nandanvan Kalpataru, & India
File Size10 MB
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