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सोम को हतप्रभ देख पानविक्रेता गिरिधर उसे महिला का कच्चा चिट्ठा बताता है कि यह उसका रोज-रोज का काम है। वह यूँ ही पति को चादर से ढंक कर उसके दाह-संस्कार हेतु प्रतिदिन चन्दा एकत्र करती है। उसके इस धन्धे में चौराहे की पुलिस भी शामिल है क्योंकि उसे भी आमदनी का एक हिस्सा घूस में मिल जाता है - पाँचवा भाग मिल जाता है। पूरे दिन में यह भिखारिन, स्थान बदल-बदल कर अपने इस धन्धे का प्रायः चार शो करती है और कम से कम दो सौ रूपये कमा लेती है।
दिन भर सोम उखड़ा-उखड़ा रहता है। इस घटना ने उसको भीतर से बुरी तरह झकझोर दिया है। वह सोचता है कि क्या पैसा कमाने के लिये लोग इस सीमा तक भी गिर सकते हैं ! शाम को वह घर लौटता है अपने मित्र कृपानाथ के स्कूटर पर बैठ कर । रास्ते में उसे सवेरे का अनुभव भी बताता है।
परन्तु तभी उसकी दृष्टि पुनः एक मज़में पर पड़ती है । उसका मन कहता है - हो न हो, उसी अलवरवाली का शो यहाँ भी चल रहा है। वह पुलिस अधीक्षक को साथ लेकर आता है तथा ऐन मौके पर उस महिला का भण्डा फोड़कर उसे गिरफ्तार करा देता है। उसका मरा पति भी पुलिस का करारा बेंत पड़ते ही उठ बैठता है। दर्शक स्तब्ध रह जाते हैं यह सब देखकर !
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॥ प्रातःकाले दशकदने महानगरशृङ्गटके विशालजनसम्मर्दोऽवलोक्यते । कार्यालयं जिगमिषवः प्रायः सर्वेऽपि जनास्तत्रैव पुञ्जीभूताः ।।
सोमः (सोत्कण्ठम्) भ्रातः किं जातम् ? किमर्थमियान् सम्मर्दः ? .
मङ्गलः (सोद्वेगम्) कश्चिन्मृतः । तत्पत्नी करुणं विलपति, तदन्त्येष्टिं सम्पादयितुं साहाय्यशुल्कं च प्रयाचते ।
सोमः कुतस्त्य आसीदयं जनः ? किञ्चिज्ज्ञातं न वा? हिन्दुरस्ति मुस्लिमो वा?
मङ्गलः (विहस्य) बन्धो ! सर्वमहमेव भणिष्यामि चेत्त्वदर्थं किमवशेक्ष्यति ? गच्छ तावत् । निर्भर ज्ञातुं यतस्व।
(इति शनैः प्रतिष्ठते)
सोमः हुँ, विक्षिप्तोऽयं प्रतिभाति । मुखोद्घाटनेऽपि कष्टमनुभवति । यदा स्वयं क्वचिन्निर्जने मरिष्यति तदा ज्ञास्यति । (आत्मगतम्) विक्षिप्तोऽहमपि यदेवं भणामि । अरे यदि मरिष्यत्येव तदा किं ज्ञास्यति ? मृते सति कोऽवकाशो ज्ञानस्याऽनुभवस्य वा ?
(इति मन्दं हसति) भवतु, स्वयमेव गत्वा पश्यामि किं घटितमत्र ? (सम्मर्दमतिक्राम्यन् घटनास्थलमुपैति । विलपन्तीं महिलां पश्यति)
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