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प्राकृतच्याश्रयमहाकाव्यम्
अमय-छिरा-महुर-सरा अमय-सिरोवम-सराहि अणुगमिआ । जिण-गाणम्मि पयट्टा गुण-भायण-दाण-भाणं तो ॥ ७२ ॥ दणु-कुल-दणुअ-कुलाराइ-दुल्लहं तीइ रा-उल-विहारे । राय-उल-पियमवीअं गीअं सोउं न को आओ ॥ ७३ ।। सक्कय-वारण-पाइअ-वायरण-पउत्त-सद्द-कय-गीए । आउज्जिअ-पायारे रंगे पुण आसि गुणि-पारो ।। ७४ ।। तत्थागओ अ कालायस-सम-कालास-अहिअ-हिअओ जो। सो केलि-किसलयासोअ-किसल-कोमल-हिओ आसि ।। ७५ ।। दुग्गावी-पा-वीढं दुग्गा-एवीस-पाय-वीढं च। मोत्तुं गण-गन्धव्वा तं गीअं सोउमोच्छरिया ॥ ७६ ॥ जिण-पाय-वडण-गुरु-पा-वडणाइं चइअ तत्थ उब्भ-जणो पुलयंकुरेहि कलिओ उउम्बरो उम्बरेहिं व ॥ ७७॥ जाव निवो कय-पूओ आरत्तिय-मङ्गलं न जा कुणइ । ता देव-उले मरुवय-पूअं अणुसोइउं लग्गो ॥ ७८ ॥ मइ ताव देउलमिमं निम्मविअं सहल-जीविअमणेण । सव्व-रिउ-कुसुम-पूआ नो जइ जीअं न मे सहलं ।। ७९ ।। अह भणिअं खे सासण-देवीए एवमेव मा जूर । आवत्तमाण-जस तुममेमेअ किमत्तमाण-मणो ॥ ८० ॥ गुणि-पावारय-पारय दुह-अड-चिन्तावडेसु मा पडसु। होही तुह उज्जाणं सइ सव्व-रिऊहि कय-कुसुमं ॥ ८१ ।।
आरत्तियमह काउं मुक्क-मलो अपरिमुत्त-माउक्को । तव-सत्तं गुण-सक्कं माउत्त-निहिं गुरुं पणओ ॥ ८२ ॥ विंचुअ-डक्कोरग-दट्ठ-जीव-जीवाउ-चरण-रेणु-कणं । लुक्क-कलिं लुग्ग-भवं तं समुपासिअ गओ राया ॥ ८३ ॥
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