________________
प्राकृतघ्याश्रयमहाकाव्यम्
करणिज्जाकरणीअं पेआपिज्जं च जे न वि मुणंति । ते दोस-दुइज्जा वि हु गुण-वीआ हुन्ति त दिढे ॥ ६० ॥ वेकक्ख-उत्तरीआ धवल-दुगूलोत्तरिज्ज-पिहिअ-मुहा । तुह कय-ण्हवणा घण-छाय-छत्त-छाहीओ माणन्ति ॥ ६१ ॥ इय सच्छाओ कइवाह-परिअणो कइअवं थुई काउं । आइ-किडि व्व अभेडो जिण-ण्हवणे अह पयट्टो सो ॥ ६२ ॥ पल्लाणिअ-अपडायाणिअ-हयमाएहि अवर-राएहि । कणवीरच्चियकलसो हलिद्द-गोरो स किर दिट्ठो ।। ६३ ॥ तेण जिणम्मि दुवालस-रवि-तेए मुहल-घण्ट-थोर-रवं । णंगलि-लंगलिभायर-सरिसेण पलोट्टिआ कलसा ॥ ६४ ॥ णंगूलि-णाहलत्तण-अपुण-भवत्थं निवेण करुणाए। लंगूलि-लाहला विं हु सित्ता जिण-ण्हवण-सलिलेण ।। ६५ ॥ ससि-खण्ड-णडालाहिं समरी-भासाइ दूसिमिण-हरणं । सिविणे वि दुलहमणुजिणमकारि संगीयमित्थीहिं ।। ६६ ॥ दढिआ सुनीविआहिं नीमीओ नच्चणीहिँ तक्कालं।। सविसेस-सद्द-गीए सज्जाइ-कमोक्कम-पयट्टे ॥ ६७ ॥ तइआ वणिअ-सुसाहिं निव-सुण्हा-वल्लहाओं ता दिट्ठा । पाहाण-पुत्तिआहि व पासाण-त्थंभ-लग्गाहिं ।। ६८ ॥ वंजिअ-दस-विह-धाऊ जणणी लास्स दह-विहस्सावि । दिवसे दिवहावगमे अ सुह-यरी वाइआ वीणा ॥ ६९ ॥ रंजिअ-नर-सिंघेणं वंसिअ-सीहेण वाइओ वंसो। दाघत्त-दाह-हरणो छुह-धवले जिण-गुणे गाउं ॥ ७० ॥ छमि-छत्तिवण्ण-गोरी छट्ठी भल्लि व्व पंच-वाणस्स । मय-छावच्छी वर-मुहर-गायणी गिण्हिउं तालं ॥ ७१ ॥
७२