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प्राकृतव्याश्रयमहाकाव्यम्
थुणिरो देवं बारह-रवि-तेअं भत्ति-गग्गर-गिराए । धम्म-करि-करलि-हूओ कयलि-मिऊ कोह-अपलित्तो ॥ ४८ ॥ दोहल-दुउणिअ-धाराकयम्ब-धूलीकलम्ब-कंटइओ। धिप्पिर-सुवन्न-दिप्पिर-तणु-कन्ति-कवट्टिअन्न-पहो ॥ ४९ ॥ चइउं निव-कउहाई निसढाइ-निवाण धम्म-सिक्खाओ। ओसहमोसढिओ इव दिन्तो स निसीहिअं काउं ।। ५० ॥ निअ-नामंकिअ-णिअ-कित्तणयं अनिला व्व अतुल-थामेण । पज्जलिआनल-तेओ भत्तीइ तओ पइट्ठो सो ॥ ५१ ॥ लिम्बासय-निम्बगिरा कलि-हाविअ-पाव-नाविआदरिसा । धम्म-रिउणो वि तस्सि दिढे धम्मोम्मुहा हूया ।। ५२ ॥ सो फणस-फालिहद्दय-दीहर-भुअ-फलिह-जोडिअ-णडालो। अफरुस-गिराइ फालिअ-मोहो इअ जिण-थुइमकासि ॥ ५३ ॥ फलिहा-जलं वहुत्तम्बुजेहि जह जह वणं च नीमहि । जग-सिरि-नीवावेडय सहइ मही तह तुह पएहिं ।। ५४ ॥ तुह कय-कुसुमामेला पण?-पारद्धि-पमुह-पाव-मला । मुत्ताहल-विमला इह हवन्ति रेभ व्व मुद्धन्ना ।। ५५ ॥ सहलो जम्मो सभलं च जीविअं ताण देव फणि-चिन्ध । जे तं चम्पय-सवलेहिं मिसिणि-कुसुमेहि अच्चन्ति ॥ ५६ ॥ असिर-कमन्धे अकयन्ध-सिरे समरम्मि तुज्झ झाणेण । केढव-रिउणो व्व निवा विसढाविसमं न जाणन्ति ॥ ५७ ॥ वम्मह-पिआहिवन्नू अहिमन्नु-पिआ य अहरिओ तेण । तुह भसल-साम पय-पंकएसु भमराइअं जेण ॥ ५८ ॥ पहु तुम्हकेर-अह-खाय-संजमे सोवओग-साहूण । न समो अह जाओ तव-किसंग-लट्ठी वि हु कुदिट्ठी ।। ५९ ।।
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