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प्राकृतद्वयाश्रयमहाकाव्यम्
बालक्क - मुह सुहकर - गज्जी सुहयर-गई अ इअ थुणिओ । जग - आगमिओ बहुतर - आअमिअ- कलेहिं बहुअरयं ॥ २३ ॥ जलयर - अजलचर-वई जस्स य इंधं रुसा - पिसाजी सो । सुहदेसु वि सुहओ जइ एरिसओ सो उण सुरेहो ॥ २४ ॥ अमुगो कर-आउण्टण-रम्मो चाउँण्ड-काउँए तुट्ठे। लब्भइ अणिउँत्तय-सुरहि-जउँण - जल - बहुल-मय- - वट्टो ॥ २५ ॥
अइतय-बिन्दु-करो अइमुत्तय - गोर - दन्तओ एस । सविमो खु साव-चविओ तिअस-गय- वरो महि-अलम्मि ॥ २६ ॥
अच्छ-कय-कण्ण-चिउओ महु - पिंगल - नयणओ मयंक - नहो । पियइ व लायण्णमिमो अखुज्ज - कुम्भो पर गयाण ॥ २७ ॥ खप्पर - खीलय - कुज्जय - कुसुम-समा जस्स सेलं - खम्भ-दुमा । रुन्धिअ-खासिअ - छिक्कं पिक्खिज्जइ मय-गलो एस ॥ २८ ॥ मरगय- गेन्दुअ- सरिसालि-गुच्छ - गण्डे निवो इहारूढो । जयइ चिलाए व्व परे सिरिकण्ठ- किराय-वीरे वि ॥ २९ ॥ जिअ - धण - सीभ - गङ्गा-सीहर- चन्दिम-सुसीअ - सीआरओ । फलिहामल - वीस - नहो निहस - प्पह-1 - चिहुरओ एस ॥ ३० ॥ पिहु-जहणो साहु-मुहो सरिसव - खल- कडुअ-सलिलओ अथिरो । इह एसो निव-जोग्गो पत्तो चोत्थि मयावत्थं ॥ ३१ ॥
निव - धम्म - रओ अह सो नभम्मि पाउस - घणो व्व पिधमिन्दो | अपिहं व आसणाओ असंकलं तं समारूढो ॥ ३२ ॥
पुन्नाम-दामवन्तो पुलोइओ भामिणीहि पउरीहिं । छालंक-देव- तेओ सुहओ रइ - सूहवो व्व निवो ॥ ३३ ॥ इन्दो दुहओ चन्दो वि दूहवो आसि खेअर - वहूणं । तस्सिदि तइआ मणि- खसिआहरण- खइअंगे ॥ ३४ ॥ वेस - पिसाओ मुत्ती - पिसल्लओ अ झडिलो अजडिलो य । खट्टंग-घण्ट:-भूसो निवारिओ न जह अटइ पुरो ॥ ३५ ॥
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