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काव्यानुवादः
मारी दुनियामां गूर्जरमूलम् - विजय राज्यगुरुः
त्यारे मारी दुनियामां नहोती फिकर के नहोतो डर पासे हती मा एनो पालव एनो हाथ एनो अवाज पछी शेरीमां गयो अने दूर नीकली गयो होस्टेलमा हतो त्यारे मा वात करवा वलखती हुं वात ढूंकावतो अने एम जिंदगी ढूंकी थती गइ परण्यो अने मानी पथारी गइ ओसरीमां एनी उधरसनो अवाज अने मारी वच्चे आवी गयां - पत्नी-बालको अने तेमनी जरूरियात ! आजे बालको एनी दुनियामां पत्नी बालकोना बालकोनी दुनियामां एकलवायो हुं झंखुं छु मानी हूंफ त्यारे मा ज नथी मारी दुनियामां !!