________________
- काव्यानुवादः
मुनिरत्नकीर्तिविजयः
आभना सूरज चंद्र ने तारा मोटा मोटा तेजराया; आतमनो तारो प्रगटाव दीवो तुं विण सर्व पराया। (भोगीलाल गांधी 'उपवासी')
सूर्यो विधुस्तारकवृन्दमभ्रे, तेजस्विनोऽन्येऽपि च सन्तु किन्तु । प्रज्वालय स्वीयमिहाऽऽत्मदीपं सर्वं, विना त्वां , पकीयमेव ॥
१००
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org