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तरंगलाला
तो भणति चेडिया में पुणो वि विणय-रइयंजलि घरिणि । सुण सामिणि विण्णत्ति उत्तम-पुरिसेसु जे होइ ॥ ७७५ कुल-ववदेसा नाणड्ढया य पुण जे ण सण्णिकरोसा(१)य । अणए ण वारयंता पुरिसा लोए हसिज्जति ॥ ७७६ अणुवारण दुईतो घेणुं खीरं नरो न साहेइ । जह तह अण्णं पि जए अणुवाएण न साहेति ॥ ७७७ असमिक्खिय-तुरिय-कय-कज्जा अणुवायतो य आरद्धा । तो आयइ-परिहीणा भवंति सिद्वा जइ वि होति ॥ ७७८ जइ वि उवायारद्धा कज्जारंभा न चेव सिझति । तो वि जणस्स मणुस्सो न चेव वयणिज्जयमुवेइ ।। ७७९ काम-सर-तिक्ख-पहरण]-निवाय-संताविओ वि किच्छ-गओ। कुल-वंसायस मीरू न मुयइ सो सप्पहं धीरी ।। ७८०
एवं चेडीए सर्म तस्स कहाहिं पडिरत्त-हियया है। समइच्छियं न याणामि पउम-जग्गावयं सूरं ॥ ७८१ तो जह तह व ण्हाया जिमिया चेडीए स(?) घरिणी। । धाती-परियण-सहिया हम्मिय-तलयं समारूढा ॥ ७८२ पवर-सयणासण-गया तहियं पिययम-कहा-पसगेणं । अच्छामि अभिरमंती पढम-पओसं पडिक्खंती ॥ ७८३ ससि मंथाणं घरिणी सरय-सिरी-वल्लभे तहोयरियं । नह-गग्गरम्मि छूट जोण्हा-महियं तहा महति ॥ ७८५ दळूण मे वियंभति गाढयरं दूसहो मण-विसाओ । मज्झब्भि(?) तिब्बो कामो वियरइ करवत्त-सारिच्छो ॥ ७८५ कामवसा दुक्खत्ता तेणाई गाढमाकुल सरीरा । इच्छे जीविय-भिक्खं वयंसि विण्णत्तिए जणियं ॥ ७८६
विस्सस माए अकामो वामो कामो य में अभिदवेइ । चंदेण कुमुय-वण-वंधवेण धणियं अभिव्बूढो ॥ ७८७ तस्स य वाम-ग्गहणेण दूध तुझं पि महुर-वयणेहिं । वायाहय-जलणिहि पाणियं व हिययं न संठाइ ॥ ७८८ नेहि मर्म सारसिए दंसण-तण्हाइयं लहुँ तस्स । असई पियस्स बसहि कामेण विणासिय चरितं ॥ ७८९ तो भणइ चेडिया में रक्खसु कुल-पचयं जस-विसालं । मा कुणसु साहसमिणं मा होहिसि हासिया तस्स ॥ ७९०