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________________ 'भक्ति एवं श्रद्धा का तेजस्वी पुंज है, जो अनेक विघ्न-बाधाओं के बीच भी अपने कर्त्तव्यकार्यों में शिथिल नहीं पड़ता। उसकी तेजस्विनी लेखनी से दर्जनों शोध-निबन्धों एवं ग्रन्थों की सर्जना हो चुकी है और विश्वास है कि भविष्य में भी होती रहेगी। ऐतिहासिकता की दृष्टि से निम्न ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं--(१) भविसयत्तकहा और अपभ्रंश कयाकाव्य, (२) अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध-प्रवृत्तियाँ आदि । एतद्विषयक शोध-निबन्धों में 'द ओल्ड व्हर्जन ऑफ जैन रामायण' (डॉ. जगदीशचन्द्र जैन), अपभ्रंश का अद्यावधि उपलब्ध हस्तलिखित अप्रकाशित ग्रन्थ 'तिसट्ठि महापुराण पुरिसचरितालंकार' तथा अद्यावधि अप्रकाशित सचित्र ग्रन्थ--संतिणाहचरिउ (डॉ. राजाराम जैन, आरा), 'प्लेस ऑफ जैन अचार्याज़ एण्ड पोएट्स इन हिन्दी ऑफ कन्नड़ लिटरेचर' (डॉ. ए. एन. उपाध्ये), श्रुतावतार कथा (पं. जुगलकिशोर मुख्तार) आदि प्रकाशित एवं बहुचित हैं। सिद्धान्त, आचार एवं अध्यात्म के क्षेत्र में जैन साहित्य का बहुत भाग सिद्धान्त, आचार एवं अध्यात्म से सम्बन्ध रखता है। यह साहित्य मूल रूप से संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं कन्नड़ भाषा अथवा लिपि में लिखा गया । जैन विद्वानों ने इस साहित्य का गहन अध्ययन कर उस पर मार्मिक टीकाएँ लिखी हैं। __पं. मक्खनलालजी शास्त्री (चावली, १८९८ ई. के लगभग) जैन समाज के शिरोमणि विद्वान् हैं। वे गुरु गोपालदासजी बरैया के साक्षात् शिष्य हैं; इस नाते उनके व्यक्तित्व एवं पाण्डित्य में हम गुरु गोपाल की स्पष्ट झाँकी ले सकते हैं। पं. मक्खनलाल ने उच्चस्तरीय जैन न्याय एवं सिद्धान्त-ग्रन्थों का गम्भीर अध्ययन कर अनेक योग्य शिष्य तैयार किये हैं, जिनमें पं. फूलचन्द्रजी शास्त्री, पं. लालबहादुरजी शास्त्री, पं. जिनदासजी शास्त्री, पं. वर्धमानजी शास्त्री आदि प्रमुख हैं। आपकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर विविध संस्थाओं ने आपको धर्मवीर , विद्यावरिधि, न्यायालंकार एवं न्यायदिवाकर जैसी सर्वश्रेष्ठ उपाधियों से अलंकृत किया है। वर्तमान में आप मुरैना विद्यालय के प्रधानाचार्य हैं । श्री पं. लालारामजी शास्त्री, श्री पं. मक्खनलालजी शास्त्री के छोटे भाई हैं। वे जैन शास्त्रों के मर्मज्ञ विद्वान् थे। उन्होंने लगभग १०० ग्रन्थों की टीकाएँ एवं अनुवादसमीक्षाएं की हैं। जैन समाज में स्वाध्याय की प्रवृत्ति जागृत करने में इनकी भाषाटीकाएँ प्रमुख कारण रही हैं। श्री पं. वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री (मूडबिद्री, १९०९ ई.) उच्चकोटि के लेखक, सम्पादक, समीक्षक, वक्ता, प्रतिष्ठाचार्य, प्रशासक एवं अनेक सामाजिक संस्थाओं के संचालक के रूप में ज्ञात हैं। जैन समाज में आज जितने भी सिद्धान्तशास्त्री उपाधिधारी विद्वान हैं, वे सब उनके द्वारा संचालित माणकचन्द्र दिग. जैन परीक्षालय, बम्बई से तैयार हुए हैं। पण्डितजी ने दर्जनों ग्रन्थों का प्रणयन, सम्पादन, संचालन एवं अनुवाद आ.वि.सा. अंक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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