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________________ (८) आदर्श जैन महिलेयरु, (९) आदर्श जैन वीररु, (१०) आदर्श साहितिगलु, (११) जैन वाङमय-मातृस्मृति, (१२) दैनिक षट्कर्म, (१३) निबन्ध संग्रह, (१४) प्रबन्ध पुंज, (१५) समवशरण, (१६) भव्यस्मरणे, (१७) महावीरवाणी, (१८) कन्नड़ कवि चरिते, (१९) कामन कलग आदि कृतियाँ प्रमुख हैं। सम्पादित कृतियों में (२०) मुनिसुव्रत महाकाव्य, (२१) चित्रसेन पद्मावती चरितम्, (२२) भव्यानन्द, (२३) कन्नड़ प्रान्तीय ताडपत्रीय ग्रन्थ-सूची, (२४) प्रशस्ति-संग्रह तथा हिन्दी में अनूदित कृतियों में मुहूर्त्तदर्पण एवं भव्यानन्द प्रसिद्ध हैं। अन्य निबन्धों में कर्नाटक कविचरिते, राजाबलि कथे, जैन रामायण में रावण का चरित्र तथा द्रौपदी के पंचपतित्व पर विचार प्रसिद्ध हैं। - पं. परमानन्दजी शास्त्री (निवार, सागर, १९६५ वि. सं.) मौन-मूक साधकों में से हैं, जिन्होंने यश एवं ख्याति अथवा पुरस्कार-प्राप्ति की कामना से दूर रहकर जैन समाज एवं जैन साहित्य की सेवा के लिए अपना तिल-तिल गला दिया है। उनके अनेक ऐतिहासिक शोध-निबन्ध एवं ग्रन्थ प्रकाशित हैं; किन्तु जैन ग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह तथा जैनधर्म का इतिहास (साहित्य खण्ड द्वि. भा.) ये दो ग्रन्थ उनकी इतिहाससम्बन्धी प्रखर प्रतिभा के परिचय के लिए पर्याप्त हैं। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री (वसई घियाराम १९२२-१९७४ ई.) ने अपनी वेगगामी गवेषणाओं में समय की गति को काफी पीछे छोड़ दिया था। उन्होंने स्वल्प जीवन-काल में विविध विषयक लगभग ४० ग्रन्थों का प्रणयन किया, जिनमें उनकी अन्तिम ऐतिहासिक कृति 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा' है, जो चार भागों में प्रकाशित है। यह ग्रन्थ ज्ञान-विज्ञान का विश्वकोश कहा जा सकता है। इतने विस्तृत इतिहास-ग्रन्थ का लेखन जैन विद्या के अनुसन्धित्सुओं के लिए एक अत्यन्त उत्साहवर्धक विषय है। इसमें शास्त्रीजी ने पूर्व प्रकाशित एवं विवेचित सामग्री के पूर्ण सदुपयोग के साथ-साथ किन्हीं अज्ञात कारणों से अद्यावधि अप्रकाशित, उपेक्षित, धूमिल तथा लुप्तप्रायः अथवा विस्मृत अनेक तथ्यों को भी प्रकाशित कर एक महान् ऐतिहासिक कार्य किया है। आपके अन्य ऐतिहासिक ग्रन्थों में--"आदिपुराण में प्रतिपादित भारत", "संस्कृत काव्य के विकास में जैन-कवियों का योगदान” तथा “हिन्दी जैनसाहित्य परिशीलन" (दो भाग) हैं। डॉ. कस्तूरचन्द्र कासलीवाल (सैंथल, १९२० ई.) ने--“शाकम्भरी प्रदेश के सांस्कृतिक विकास में जैनधर्म का योगदान" लिखकर नागौर, साँभर, अजमेर, नरायणा, मौजमाबाद, मारौठ, जोवनेर, रूपनगढ़, कालाडेहरा, भादवा, दुदू एवं रैनवालकिशनगढ़ के प्राचीन वैभव, वहाँ के भट्टारकों की प्रमुख प्रवृत्तियाँ, शास्त्र-भण्डारों तथा उनमें सुरक्षित कुछ हस्तलिखित ग्रन्थों एवं प्रदेश के जैन पुरातत्त्वों का सुन्दर परिचय प्रस्तुत किया है। अपने विषय का यह प्रथम ग्रन्थ है। ___ डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री (चिरगाँव, झांसी १९३३ ई.) कद में छोटे किन्तु विद्वत्ता में अथाह हैं । सच्चे अर्थ में यह नन्हा-सा दिखनेवाला पण्डित-डॉक्टर ज्ञान, कर्म, तीर्थकर : नव-दिस. ७८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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