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________________ कथनानुसार विज्ञान के क्षेत्र में आज जो भी नित-नवीन आविष्कार हो रहे हैं, जैनाचार्य शताब्दियों पूर्व ही उनसे सुपरिचित थे। डॉ. नन्दलाल जैन (शाहगढ़, बिजावर, म. प्र.) ने सन् १९५२ के आसपास वाराणसी से सर्वदर्शनाचार्य एवं औद्योगिक रसायनशास्त्र विज्ञान में एम. एस-सी. वर्ग में सर्वोच्च सम्मानित स्थान प्राप्त किया। कुछ वर्षों तक विविध विज्ञान महाविद्यालयों में अध्यापन-कार्य करके उन्होंने ग्लासगो (इंग्लैण्ड) एवं वर्कले (अमेरिका) के वैज्ञानिक शोध-संस्थानों में शोध-कार्य किये और इस समय मध्यप्रदेश शासन के विज्ञान महाविद्यालय, जबलपुर में अध्यापन-कार्य कर रहे हैं। डॉ. जैन ने जैन गणित, जैन भौतिकी, जैन वनस्पतिशास्त्र, जैन जीवविज्ञान आदि विषयों पर अनेक तुलनात्मक एवं विश्लेषणात्मक निबन्ध लिखे हैं, जो उच्चस्तरीय शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। डॉ. जैन की प्रतिभा अद्भुत है। यदि इन्हें कोई उपयुक्त प्रयोगशाला मिले, तो ये प्रयोगों द्वारा जैन विज्ञान के कई तथ्यों पर विश्लेषणात्मक प्रकाश डाल सकते हैं। प्रो. लक्ष्मीचन्द्र जैन (प्राचार्य. शास. महा., जावरा) ने तिलोयपण्णति, त्रिलोकसार, गणितसार (महावीराचार्य) आदि जैन ग्रन्थों के आधार पर जैन गणित का आधुनिक गणित के साथ तुलनात्मक अध्ययन किया है और जैन गणित की मौलिकताओं पर अच्छा प्रकाश डाला है। प्रो. जैन ने अभी तक उक्त विषयक लगभग ३० शोध-निबन्ध लिखे हैं, जो यत्र-तत्र प्रकाशित हैं। इनके एक साथ पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किये जाने की आवश्यकता है। प्रो. घासीराम जैन (मेरट) सम्भवतः सर्वप्रथम जैन विद्वान् हैं, जिन्होंने तत्त्वार्थसूत्र के पाँचवें अध्याय का आधुनिक विज्ञान के आलोक में अध्ययन किया। उन्होंने उसका अंग्रेजी अनुवाद तथा तुलनात्मक अध्ययन कर जैन जगत् एवं विज्ञानजगत् दोनों को ही आश्चर्यचकित किया था। प्रो. जैन का उक्त पाँचवाँ अध्याय कॉस्मालॉजी : ओल्ड एण्ड न्यू के नाम से भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली द्वारा प्रकाशित है। इस पुस्तक ने नवीन पीढ़ी के वैज्ञानिकों को बड़ी प्रेरणा प्रदान की है। अन्य वैज्ञानिकों में डॉ. दुलीचन्द्र जैन (मुंगावली, मध्यप्रदेश), डॉ. ज्ञानचन्द्र जैन आलोक (जिजियावन, ललितपुर, उ. प्र.), डॉ. पूर्णचन्द्र जैन (कुदपुरा, सागर, म. प्र.), डॉ. त्रिलोकचन्द्र जैन (जामनगर), डॉ. राजकुमार गोयल (जामनगर), डॉ. एम. के. जैन (अमेरिका), डॉ. मोतीलाल जैन (सिलावन, झाँसी), डॉ. मोतीलाल जैन (पटियाला), डॉ. राजमल कासलीवाल (जयपुर), डॉ. शिखरचन्द्र लहरी एवं डॉ. शिखरचन्द्र जैन (दमोह) प्रमुख हैं। ये पण्डित-वैज्ञानिक अपने-अपने विज्ञान के क्षेत्रों में तो कार्यरत हैं ही, साथ ही जैन समाज एवं साहित्य की प्रगति तथा प्रचार-प्रसार हेतु भी चिन्तित हैं। जैन समाज एवं संस्थाओं को चाहिये कि उन्हें प्रोत्साहन दें तथा उनके विचारों एवं अनुभवों का लाभ उठायें। तीर्थकर : नव-दिस. ७८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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