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सम्पदा का सर्वप्रथम तुलनात्मक, विश्लेषणात्मक एवं ऐतिहासिक विकासक्रम की दृष्टि से गंभीर अध्ययन कर बम्बई विश्वविद्यालय से सन् १९७४-७५ में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। 'इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इण्डिया' के विशेषांकों में उनके तद्विषयक सचित्र शोध-निबन्धों के अतिरिक्त भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से प्रकाशित जैनकला एवं स्थापत्य नामक ग्रन्थ के तृतीय भाग (दे. अध्याय ३१, पृ. ३९९ से ४३९ तक) में प्रकाशित शोध-निबन्ध विशेष महत्त्वपूर्ण प्हैं।
___ डॉ. सरयू बहिन अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में जैन चित्रकला की प्राध्यापक भी रह चुकी हैं। भविष्य में उनसे बड़ी-बड़ी आशाएँ हैं। जैन दर्शन शास्त्री एवं आचार्य उपाधिधारी जैन वैज्ञानिक
वाराणसी के स्याद्वाद दि. जैन महाविद्यालय की यह परम्परा रही है कि उसने जैन दर्शन की शिक्षा के साथ-साथ अपने स्नातकों को लौकिक शिक्षा प्राप्त करने की सुविधाएँ भी प्रदान की हैं। यही कारण है कि उसके अनेक स्नातक एक ओर संस्कृत, प्राकृत भाषाओं एवं जैन दर्शन का उच्च अध्ययन करते रहे और दूसरी ओर विविध विज्ञानों का भी अध्ययन करते रहे। आगे चल कर परिस्थिति-वश ऐसे विद्वान् भले ही जैन समाज के सीधे सम्पर्क में रह कर जैन समाज की सेवा नहीं कर पाये, किन्तु वे जहाँ भी कार्यरत हैं, वहाँ अपना विशिष्ट स्थान बनाये हुए हैं और इस माध्यम से भी वे अपने श्रमणोचित आचार-विचार, सत्श्रम, सदाचरण, उदार हृदय एवं सौमनस्य से अपने चतुर्दिक जैनत्व की छाप छोड़ते रहते हैं। ऐसे अनेक पण्डित-वैज्ञानिकों में से कुछ का परिचय निम्न प्रकार है
___डॉ. भागचन्द्र जैन (कुदपुरा, सागर, म. प्र.) स्याद्वाद दि. जैन महाविद्यालय, वाराणसी के शास्त्री एवं आचार्यवर्ग के यशस्वी छात्रों में अग्रगण्य रहे हैं। उन्होंने सन् १९४६ के आसपास काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से रसायन-शास्त्र में एम. एस-सी. में सर्वोच्च सम्मानित स्थान प्राप्त कर बंगलौर एवं अमेरिका में उच्चस्तरीय शोध-कार्य किया तथा प्रारम्भ में साह जैन लिमिटेड में एवं वहाँ के बाद आजकल बिरला उद्योगान्तर्गत बिहार एलॉय स्टील लिमिटेड, पतरातू (बिहार) के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। डॉ. जैन एक ओर विज्ञान के क्षेत्र में अपनी मौलिकताओं एवं प्रवीणताओं में विशिष्ट स्थान बनाये हुए हैं और दूसरी ओर वे जैन समाज के उत्थान, जैन नवयुवकों को युगानुकूल पथ-प्रदर्शन तथा जैनधर्म के वैज्ञानिक स्वरूप के प्रचार-प्रसार के लिए चिन्तित रहते हैं। अपने अमेरिकी-प्रवास में उन्होंने वहाँ के विभिन्न क्लबों एवं गिरजाघरों में जा-जाकर “जैनधर्म और ईसाई धर्म", "जैनदर्शन एवं पाश्चात्य-दर्शन", "जैनाचार, क्रिश्चियानिटी एवं इस्लाम", "जैनधर्म विश्वधर्म है" आदि विषयों पर अनेक भाषण देकर पर्याप्त लोकप्रियता अजित की है। डॉ. जैन का विश्वास है कि जैनधर्म के सिद्धान्त पूर्णतया वैज्ञानिक हैं। उनके
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आ.वि.सा. अंक
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