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संदर्भ : दिग. जैन पण्डित
जैन विद्या : विकास-क्रम/कल, आज (५)
। डॉ. राजाराम जैन
डॉ. गोकुलचन्द्र जैन (पिडरुआ, सागर, १९३४) ने अहिंसा संस्कृति के महान् ग्रन्थ-यशस्तिलक-चम्पू-का हिन्दी में सर्वप्रथम सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत किया है, जिसमें तत्कालीन सांस्कृतिक सामग्री का विश्लेषण कर जैन विद्या की गरिमा को समुन्नत किया है।
__डॉ. प्रेमसुमन जैन (सिहुडी, दमोह, मध्यप्रदेश, १९४२ ) हमारी पीढ़ी के नवीन विकसित सुमन हैं; जिनकी सुगन्ध से हमारा साहित्य एवं शोध-जगत् सुवासित होने जा रहा है। उन्होंने उद्योतनसूरिकृत 'कुवलयमाला' कथा का सांस्कृतिक अध्ययन किया है, जिसका प्रकाशन राजकीय प्राकृत शोध संस्थान, वैशाली से हुआ है। यह ग्रन्थ डॉ. सुमन के गम्भीर अध्ययन, अथक परिश्रम एवं असाधारण धैर्य का प्रतीक ग्रन्थ है।
__ ऐतिहासिक शोध-निबन्धों में डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन कृत-मन्त्रीश्वर चाणक्य का जैनत्व, डॉ. कैलाशचन्द्र जैन (उज्जैन) कृत महावीर की निर्वाण-तिथि, श्री गोपी लाल अमर (दिल्ली) कृत-जैनकाल में भारतीय दैव-प्रतीकों का रूपान्तर, पं. फूलचन्द्रजी शास्त्री कृत चन्देरी-सिरोंज परवारपट्ट, पं. सुमेरुचन्द्र दिवाकर कृत एन्टीक्विटी ऑफ जैनिज्म, पं. दिगम्बरदास मुख्त्यार (सहारनपुर) कृत अशोक जैनधर्मी था तथा विदेशों में जैनधर्म, मान्यखेट महान् (मान्यखेट जैन संस्थान, मलखेड द्वारा प्रकाशित, १९४७), श्री कन्हैयालाल सरावगी, पावा निर्णय आदि निबन्ध उल्लेखनीय हैं।
डॉ. (श्रीमती) सरयू व्ही. दोशी (बम्बई) जैन समाज की उन युवती महिलाओं में से हैं; जिन्होंने शोध-क्षेत्र में अछूते, उलझन-भरे कठिनतम कार्यों के करने की दृढ़ प्रतिज्ञा की है। सांसारिक वैभव की गोद में पली-पुसी तथा भोगविलास के वातावरण से घिरी हुई इस युवती शोध-छात्रा ने भौतिक सुखों की उपेक्षा कर जिनवाणी की गहन साधना की दृढ़ प्रतिज्ञा की है। इन्होंने देश-विदेश के प्राच्य ग्रन्थागारों से अद्यावधि अप्रकाशित सचित्र जैन शास्त्रों की खोज कर उनकी चित्र
तीर्थंकर : नव-दिस. ७८
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