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________________ विषय चयन की समस्या शोध- छात्रों के सामने शोध कार्य के लिए विषय चयन की भी समस्या रहती है । इसका प्रमुख कारण उनका एम. ए. तक जैन साहित्य से दूर रहना है । विषय का चुनाव भी उतना ही कठिन है, जितना कि गाइड का । वैसे यह कहा जाता है कि चाहे कोई भी विषय ले लो, उसमें बहुत गुंजाइश है, लेकिन विषय कौन-सा लें ? इसलिए सभी शोध संस्थाओं में दोनों तरह के विषयों की सूची रहनी चाहियेएक तो वे जिन पर कार्य हो चुका है तथा एक वे जिन पर कार्य किया जा सकता है। इससे शोध- छात्र को अपने विषय के चयन में बहुत आसानी होगी । अच्छे विषय का चुना जाना आवश्यक है; क्योंकि यदि शोधार्थी ने एक बार गलत विषय ले लिया तो फिर या तो उसे बीच में से ही भागना पड़ेगा, या फिर वह उसे कई वर्षों में भी पूरा नहीं कर सकेगा । पाण्डुलिपियों की समस्या अधिकांश जैन साहित्य शास्त्र भण्डारों में बन्द है और ये भण्डार देश के सभी भागों में बिखरे हुए हैं । यदि राजस्थान के भण्डारों की ग्रन्थ सूचियाँ हम लोग तैयार न करते तो जो कुछ आज काम हो रहा है, वह नहीं होता । इसलिए देश के सभी शास्त्र-भण्डारों की ग्रन्थ सूचियाँ प्रकाशित होनी चाहिये और शीघ्रता से नहीं छप सकें तो कम-से-कम हाथ से तैयार की हुई प्रतियाँ ही कुछ प्रमुख केन्द्रों पर होनी चाहिये, जिससे विद्यार्थी वहाँ जाकर उनको देख सके । मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गुजरात, हरियाणा, देहली आदि प्रदेशों में जैन ग्रन्थों के विशाल भण्डार हैं; लेकिन उनके सूचीपत्र नहीं बनने के कारण उनका कोई उपयोग नहीं होता इसलिए मेरा सभी विद्वानों से निवेदन है यक इस दिशा में कोई ठोस योजना तैयार करें ताकि ग्रन्थों- भण्डारों की सूची का कार्य हो । आर्थिक समस्या शोध- छात्रों के सामने अर्थ की भी बड़ी भारी समस्या रहती है । मैं जानता कि कितने ही मेघावी छात्र अर्थाभाव के कारण ही शोध कार्य को हाथ जोड़ लेते हैं। समाज में छात्रवृत्तियों के देने की काफी चर्चा होती है । कहीं-कहीं छात्रवृत्तियाँ दी भी जाती है, इस सम्बन्ध में श्री महावीर क्षेत्र का नाम लिया जा सकता है। कुछ छात्रवृत्तियाँ साहू जैन ट्रस्ट की ओर से भी दी जाती हैं तथा इन्दौर-समाज ने भी देना प्रारम्भ किया है, लेकिन एक तो इन संस्थाओं लघु रूप में छात्रवृत्तियाँ मिलती हैं और कुछ भी मिल ही जाए इसकी कोई गारण्टी नहीं होती । मैं तो यह चाहता हूँ कि प्रत्येक शोधार्थी को कम-से-कम २५०-३०० रु. की छात्रवृत्ति ज्यों ही उसका रजिस्ट्रेशन हो जाए, प्राम्भ हो जानी चाहिये, जिससे शान्तिपूर्वक वह अपना कार्य कर सके। छात्रवृत्ति देने में किसी प्रकार का बन्धन नहीं होना चाहिये । विद्यार्थी चाहे जैसा हो या जेनेतर, यदि वह जैन धर्म, दर्शन एवं साहित्य से सम्बन्धित विषय पर शोध कार्य करना चाहता है तो उसे सरलता से शोध छात्रवृत्ति मिल जानी चाहिये । एक ऐसा सार्वजनिक पूल ( शोधपुष्कर ) होना चाहिये तथा उसकी व्यवस्था भी एक उदार हृदय व्यक्ति के पास रहनी चाहिये । ८८ Jain Education International For Personal & Private Use Only आ. वि. सा. अंक www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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