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मैं घबराकर बोला-"पण्डितजी, खैर तो है, क्या हुआ ?"
वे पसीने को चाँद पर से पोंछते हुए बोले-"बाबाजी स्टेशन पर बैठे हुए हैं" और यह कहकर ऐसे देखने लगे जैसे किसी भागी हुई स्त्री के मरने की खबर फैलाने के बाद, उसे पुनः देख लेने पर होती है। मुझे समझते देर न लगी कि ये बाबाजी कौन-से हैं और क्यों आये हैं ? बात यह थी कि पानीपत में ब्रह्मचारीजी के काफी भक्तथे, उन्होंने आने के लिए उन्हें निमंत्रण भी दिया था, पर इस हवा में कुछ विरोधी विचार के भी हो गये थे, उन्होंने ब्रह्मचारीजी को न आने का तार दे दिया।
___ स्थानीय उत्सव था, कोई अखिल भारतीय तो था नहीं। चाहते तो आना टाला जा सकता था; परन्तु विरोधी तार पहुँचने पर तो मानो उनको चुनौती मिल गयी कि सब कार्यक्रम छोड़कर पानीपत आ गये। वहाँ के सुधारक भी नहीं चाहते थे कि व्यर्थ में आपस में मनमुटाव बढ़े और अभिलाषा यही रखते थे कि समयाभाव वश न आ सकें तो अच्छा ही है। .. लेकिन जब यकायक उनके आने का समाचार मिला तो मानो अंधेरे में साँप पर पांव पड़ गया। अब स्थानीय मनमुटाव की बात तो गौण हो गयी, उनके मानापमान की समस्या खड़ी हो गयी। ऐसे अवसरों पर स्थानीय कार्यकर्ताओं की स्थिति बड़ी नाजुक हो जाती है। घर में ही दलबन्दी शुरु हो जाती है। रातदिन के उठने-बैठने वाले भी विरोध करने लगते हैं। मित्र भी शत्रु-पक्ष में जा बड़े होते हैं। खैर, जैसे-तैसे ब्रह्मचारीजी को सभा में लाया गया।
सभा का अध्यक्ष भी उन्हीं को चुना गया तो एक-दो व्यक्तियों ने कुछ पक्षियों जैसी आवाज़ में फ़ब्ती कसी। मुझे ही सबसे पहले बोलने को खड़ा किया गया। अभी मुंह खोला भी न था कि बाहर दरवाजे पर लोग लाठियां लेकर आ गये। इधर से भी लोग सामना करने को जा डटे। हम परेशान थे कि क्या आज सचमुच हमारे जीते-जी ब्रह्मचारी पर हाथ छोड़ दिया जाएगा? उन दिनों मैं आर्यसमाजी टाइप डंडा अपने साथ रखता था, लपककर उसे उठा लिया और आवेशभरे स्वर में बोला-“ब्रह्मचारीजी', अब आप व्याख्यान देना प्रारम्भ कर दें, देखें कौन माई का लाल आप तक बढ़ता है ?"
ब्रह्मचारीजी सिहर-से गये, बोले-“भाई शान्त रहो, मेरा ब्याख्यान करा दो, फिर चाहे मेरा कोई प्राण ही निकाल दे"।।
आखिर पाला सुधारकों के हाथ रहा और मुट्ठी भर विरोधी खदेड़कर दूर भगा दिये गये। उन दिनों पानीपत में पं. अरहदासजी जीवित थे। क्या ही पुरानी वज़अ-कतअ के धर्मात्मा जीव थे ! उनकी मृत्यु से पानीपत की समाज को गहरी क्षति पहुँची है। आज भी बा. जयभगवानजी वकील-जैसे दार्शनिक और ऐतिहासिक
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आ.वि.सा. अंक
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