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भूल की; पर न जाने क्यों व्र. सीतलप्रसादजी को जो पहली बार देखा तो फिर न भूला
उस बोरिया नशीका' दिली में मुरीद हैं।
जिसके रियाजोजहद में बूएरिया न हो। ___ सन् १९१९ में रोलट एक्ट विरोधी आन्दोलन के फलस्वरूप अध्ययन के बन्धन को तोड़कर सन् १९२० में दिल्ली चला आया। उसी वर्ष ब्रह्मचारीजी में दिल्ली के धर्मपुरे में चातुर्मास किया। भूआजी ने रात को आदेश दिया कि प्रातः काल पाँच बजे ब्रह्मचारीजी को आहार के लिए निमन्त्रण दे आना, निमन्त्रण-विधि समझाकर यह भी चेतावनी दे दी कि 'कहीं ऐसा न हो कि दूसरा व्यक्ति तुमसे पहले ही निमन्त्रण दे जाए और तुम मुँह ताकते ही रह जाओ। _ब्रह्मचारीजी की चरण-रज पड़ने से घर कितना पवित्र होगा, आहार देने से कौन-सा पुण्य-बन्ध होगा, उपदेश-श्रवण से कितनी निर्जरा होगी और कितनी देर संवर रहेगा-यह लेखा तो भूआजी के पास रहा होगा, मगर अपने को तो बचपन में देखे हुए उन्हीं ब्रह्मचारीजी के पुनः दर्शन की लालसा और निमन्त्रण देने में पराजय की आशंका ने उद्विग्न-सा कर दिया, बोला-“यदि ऐसी बात है तो मैं वहाँ अभी जा बैठता हूँ, अन्दर किसी को घुसते देखूगा तो उससे पहले मैं निमन्त्रण दे दूंगा"। भूआजी मेरे मनोभाव को न समझ कर स्नेह से बोलीं-"नहीं बन्ने ! अभी से जाने की क्या ज़रूरत है सवेरे-सवेरे उठ कर चले जाना"।
मजबूरन रात को सोना पड़ा, मगर उत्साह और चिन्ता के कारण नींद नहीं आयी; और ३-४ बजे ही पहाड़ी धीरज से दो मील पैदल चल कर धर्मपुरे पहुँचा तो फाटक बन्द मिला। बड़ा क्रोध आया-“अभी तक मन्दिर के नौकर सोये ही हुए हैं। लोग निमन्त्रण देने चले आ रहे हैं, मगर इन्हें होश तक नहीं। ऐसे मूर्ख हैं कि एक रोज़ दर्वाजा बन्द करना नहीं भूलते, गावदी कहीं के"!
अन्धेरे में ही दरवाज़ा खुला तो मालूम हुआ कि ब्रह्मचारीजी मन्दिर की छत पर हैं। जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ चढ़ कर मैं चाहता था कि ब्रह्मचारीजी के पाँव छूकर निमन्त्रण दे दूं, कि देखा वे अटल समाधि में लीन हैं। सुहावनी ठण्डी-ठण्डी हवा में मीठी नींद छोड़ कर विदेह बने बैठे हैं। भक्तिविभोर होकर साष्टांग प्रणाम किया और उठकर सतर्कता से इधर-उधर देखता रहा कि कोई अन्य निमन्त्रणदाता न आन कुदे; और इसी भय से मन्दिर के आदमी से तनिक ऊँची आवाज़ में पूछ भी लिया कि ब्रह्मचारीजी कितनी देर में सामायिक से उठेंगे, मैं उन्हें निमन्त्रण देने आया हूँ। ताकि ब्रह्मचारीजी भी सुन लें और अब और किसी का निमन्त्रण स्वीकृत न कर लें। वे निश्चित समय पर सामायिक से निवृत्त हुए, निमन्त्रण मंजर किया और सानन्द आहार और उपदेश हुआ। १. चटाई पर बैठा हुआ तपस्वी; २. शिष्य; ३. व्रत और त्याग में; ४. बनावट की गन्ध ।
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आ.वि.सा.अंक
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