SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाबू बाबाजी की याद में ब्र. सीतलप्रसादजी की जन्मशताब्दी पर उनका भावभीना स्मरण बकलम स्व. अयोध्याप्रसाद गोयलीय (जन्म-लखनऊ, १८७९ ई; पिताश्री मक्खनलाल; माता-श्रीमती नारायणीदेवी; १९०४ ई. में पत्नी तथा माता का देहावसान; १९११ ई. में ब्रह्मचर्य-प्रतिमा; १९०९१९२९ ई. जैनमित्र का संपादन; १९१३ ई. में जर्मन विद्वान् हर्मन जेकोबी की अध्यक्षता में 'जैनधर्म-भुषण' की उपाधि से अलंकृत; १९२७ ई. में सनातन जैन मासिक की स्थापना; लगभग ७७ स्वतन्त्र प्रन्थों, भाषा-टीकाओं का लेखन-संपादन इत्यादि; १० फरवरी, १९४२ को लखनऊ में देहावसान।) INDRAN I सन् १९१३ या '१४ की बात है, मैं उन दिनों अपनी ननिहाल (कोसीकलां, मथुरा) की जैन पाठशाला में पढ़ा करता था। बालबोध तीसरा भाग घोंटकर पी लिया गया था और महाजनी हिसाब में कमाल हासिल करने का असफल प्रयत्न जारी था। तभी एक रोज़ एक गेरुआ वस्त्रधारी, हाथ में कमण्डलु और बगल में चटाई दबाये क़स्बे के दस-पाँच प्रमुख सज्जनों के साथ पाठशाला में पधारे। चांद घुटी हुई, चोटी के स्थान पर यूंही दस-पाँच रत्ती-भर बाल, नाक पर चश्मा, सुडौल और गौरवर्ण शरीर, तेज से दीप्त मुखाकृति देख हम सब सहम गये। यद्यपि हाथ में उनके प्रमाण-पत्र नहीं था, फिर भी न जाने हमने कैसे यह भांप लिया कि ये कोरे बाबाजी नहीं, बल्कि बाबू बाबाजी हैं। साधु तो रोज़ाना ही देखने में आते थे, बल्कि आगे बैठने के लालच में हम खुदं कई बार रामलीला में साधु बन चुके थे, परन्तु किताबी पाठ के सिवा सचमुच के जीते-जागते साधु भी जैनियों में होते हैं, इस विलुप्त पुरातत्त्व का साक्षात्कार अनायास उसी रोज़ हुआ। मैं आज यह स्मरण करके कल्पनातीत आनन्द अनुभव कर रहा हूँ कि बचपन में मैंने जिस महात्मा के प्रथम बार दर्शन किये, वे इस युग के समन्तभद्र ब्र. सीतलप्रसादजी थे। विद्यार्थियों की परीक्षा ली। देवदर्शन और रात्रिभोजन त्याग का महत्त्व भी समझाया। दो-एक रोज़ रहे और चले गये, मगर अपनी एक अमिट छाप मार गये। जीवन में अनेक त्यागी और साधु फिर देखने को मिले, मगर वह बात देखने में नहीं आयी--तुलसी काली कामरी, चढ़ौ न दूजौ रंग। सैकड़ों पढ़े हुए पाठ भूल गया। जीरे की बजाय सौंफ और धनिये के बजाय अजवायन लाने की मैंने अक्सर तीर्थंकर : नव.दिस. ७८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy