________________
नैनागिरि
खुलते हैं । जहाँ अन्तर्नयन
तीर्थ सदा से हमारे सांस्कृतिक जीवन की धुरी रहे हैं । सारी-की-सारी नैतिक रस्त-नाड़ियाँ यहीं होकर गुजरती हैं और हमें संस्कृति तथा धर्म के तल
पर नया जीवन प्रदान करती हैं। यहीं से हम उत्साह की मंद पड़ती लौ के लिए नयी जोत पाते हैं और अपने सामाजिक जीवन को अधिक स्वच्छ और सुसंस्कृत बनाते हैं। थोड़े मे कहें तो तीर्थ हमारे आत्मकल्प के सर्वोत्कृष्ट साधन हैं। नैनागिर, जिसका लोकप्रयुक्त नाम नैनागढ़ कमी रहा है, एक ऐसा नयनामिराम तीर्थ है, जहाँ हमारे अन्तर्नेत्र उघड़ते हैं और जहाँ हमारे रोम-रोम, रेशेरेशे में एक नयी आध्यात्मिक स्फूर्ति अंगड़ाई भरती है। सागर से ५७ किलोमीटर दूर यह तीर्थ, जिसे प्रकृति ने अपनी पहाड़ी अंगुलियों से सिंगारा है, न केवल सांस्कृतिक वरन् पुरातात्त्विक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।
- सुरेश जैन
मध्यप्रदेश का छतरपुर जिला सामरिक शौर्य और पारमार्थिक पुरुषार्थ के लिए प्रसिद्ध रहा है। नैनागिर इसी जिले के बकस्वाहा परगने के दलपतपुर ग्राम से १२ किलोमीटर सागर-कानपुर मार्ग पर अवस्थित है। तीर्थ तक पक्की, निरापद सड़क है, और राह का जंगल सघन बियावाँ होते हुए भी सुहावन है।
___ नैनागिरि, जिसे बोलचाल में लोग 'नैनागिर' भी कहते हैं, नाम कैसे लोगों की जीभ चढ़ा, कहना असंभव है; किन्तु माना यह जाता है कि यह पहले कभी 'नैनागढ़' था और बाद को घिसघिसाकर 'नैनागिर' हो गया है। एक और आधार इस नाम का मिलता है। भैया भगवतीदास ने निर्वाणकाण्ड (प्राकृत) की इस संदर्भ में प्रसिद्ध गाथा के अनुवाद में 'रेसिंदीगिरि नयनानन्द' का प्रयोग किया है। यद्यपि 'नयनानन्द' यहाँ विशेषणपद की तरह प्रयुक्त है; लोककण्ठ को विशेषण की जगह विशेष्य और विशेषण की जगह विशेष्य को बिठाने में अधिक देर कहाँ लगती है ? उसकी शब्द-टकसाल अद्भुत-अद्वितीय है। यही कारण है कि समय बीतते 'विन्ध्येल
तीर्थंकर : नव. दिस. ७८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org