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BARAK
सदलगा (कर्नाटक) में बालक विद्याधर का जन्म-स्थान; द्वार पर खड़े हैं बड़े भाई
श्री महावीर बाबू एवं पिताजी श्रीमल्लप्पाजी (अब मुनि श्रीमल्लिसागरजी)
आत्मा का क्या कुल ? लोग कुलों का मद करते हैं कि हमारा कुल बहुत ऊँचा है, हम अमुक परिवार के हैं, जिसमें ऐसे-ऐसे ऊँचे आदमी पैदा हुए हैं, किन्तु ऐसा मद व्यर्थ है। कुल में उत्पन्न होने का कोई महत्त्व नहीं है। महत्त्व तो इस बात का है कि कार्य ऊँचे किये जाएँ। कार्यों का महत्त्व है और सद्कार्यों से संवार-परिभ्रमण छूट सकता है ; अन्यथा किसी कुल में भी जन्म हो जाए, उससे प्रयोजनभूत तत्त्व की उपलब्धि सम्भव नहीं।
वैसे आत्मा का क्या कुल है ? आत्मा तो बिना कुल के भी रह सकती है, किन्तु कुल आत्मा के बिना रह नहीं सकता। आत्मा का तो अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है, किन्तु कुल का कोई स्वतन्त्र अस्तित्व सम्भव ही नहीं है; अतः कुल का मद त्याग आत्म-तत्त्व की उपलब्धि में लगो। वही सारे प्रयासों का सार है। ...
-आचार्य विद्यासागर
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आ. वि. सा. अंक
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