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भगवान् के समान होती है, और चर्या देखते हैं तो मोक्षमार्ग के पथिक की अनुभूति हो जाती है। इस तरह गुरु में तीनों का समावेश हो जाता है। हमारे भगवान् बोलते नहीं हैं, समझाते नहीं हैं, मौन रहते हैं, बल्कि यूँ कहना चाहिये कि शास्त्र पढ़ने से कई बार गड़बड़ हो जाती है, क्योंकि शास्त्र मक होते हैं, व्याख्या नहीं कर पाते। कभी यह इंगित नहीं कर पाते कि इसका यह अर्थ निकालो। सत्य को देखते हुए भी सत्य का कथन नहीं करते भगवान् । यों कहना चाहिये कि जिस समय भगवान् को केवलज्ञान होता है, उनकी वाणी खिरती है। जो भी है वह वचनयोग है। जिनशासन जो चलता है, वह गणधर परमेष्ठी के योग की बात है। भगवान् को जैसे केवलज्ञान हुआ वैसे ही उनके पास वचनयोग है। यह वचनयोग ठीक वैसा ही है, जैसे मैनलाइन में विद्युत् तरंगें; लेकिन स्विच के बिना इन तरंगों का क्या-कुछ हो सकता है ? स्विच गणधर परमेष्ठी हैं। वे न आयें तो बैठे रहो। भगवान् के पास केवलज्ञान से लेकर तीव्र शक्लध्यान पर्यन्त अन्तर्महर्त आय शेष रहती है, तब तक वचनयोग तो होता ही है। इसे उन्होंने रोका नहीं। उसका निग्रह नहीं किया। श्रुत अर्थात समुद्र; जिस प्रकार केवलज्ञान समुद्र है, उसी तरह श्रुत भी समुद्र है, अन्तहीन है। हाँ, उसके माध्यम से जो ग्रहण किया जाता है, वह सान्तसीमित है। लट्टू जलता है, १० वाट का, १०० वाट का, जीरो वाट का, किन्तु विद्युत तो पूरे वेग से प्रकट है। दूसरे हम तो लट्ट पर ही लटू हो रहे हैं, हमारा ध्यान मैनलाइन पर कहाँ है ? (हँसी)। ने.-कहें, लटू की तरह घूम रहे हैं (हँसी)। आ.-असली बात यही है। गाड़ी यहीं अटक गयी है। वि.-यही तो बात है। क्या-क्या कहा जा सकता है, क्या-क्या कहा जा चुका है, विपुल है-किन्तु इसके कथन के लिए तो केवलज्ञानी चाहिये। स्वयं गणधर परमेष्ठी भी उसे हज़म नहीं कर सकते। बहुत अद्वितीय-अनुपम है वह। वह पर के लिए है। वचनयोग का लक्ष्य अभय है। भगवान की दिव्यध्वनि विश्व को अभय देने वाली है। एक को भी भयभीत करने वाली वह नहीं है। विश्व को वे अभय किस तरह दे रहे हैं ? तत्त्वनिर्देश द्वारा। जबसे उन्हें केवलज्ञान हुआ है, तबसे तृतीय शुक्लध्यान तक वे धाराप्रवाह कह रहे हैं-चतुर्दिक। जैसे बिजली चारों ओर से आती है, वाणी भी आयी हुई है। गणधर परमेष्ठी चार बार स्विच दबाते हैं। गणधर छद्मस्थ हैं। उन्हें आहार चाहिये; वे नगर जाते हैं, उनके कुछ कर्तव्य हैं, तब बिजली बन्द हो जाती है। लगभग पन्द्रह साल हुए, मैं पोस्टऑफिस गया था लिफाफा लेने। उस समय तारबाबू तार भेज रहे थे। तार भेजने में मोर्सकोड का उपयोग होता है। उधर से मोर्स-संकेतों में शब्द आ रहे थे, इधर तारबाबू उन्हें रोमन में रूपान्तरित कर रहे थे। मोर्सकोड क्या है ? यह कौन-सी भाषा है ? तारबाबू से पूछा कि यह भाषा कौन-सी है। वे बोले-यह ध्वनि-प्रतीकों की एक विशिष्ट भाषा है। एक तरह का शॉर्टहैण्ड है। इन विशिष्ट ध्वनि-संकेतों के माध्यम
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आ. वि. सा. अंक
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