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________________ के साथ आपका मोह है, वही तो संसार है और जिन-जिन पदार्थों के प्रति मोह नहीं है, उन पदार्थों की अपेक्षा से तो आप मुक्त हैं। आपके साथ जो पदार्थ हैं, उन पर आपने जो स्वामित्व जमाया है, उस अपेक्षा से आप बन्धित हैं। किनको छोड़ना है, यह सीमित है; वह भाव हट जाए, मोह का अभाव हो जाए, तो बसं आज मुक्ति है। आप आज ही मुक्ति का अनुभव कर सकते हैं। आज भी रत्नत्रय के आराधक रत्नत्रय से शुद्ध आत्मा को जिन्होंने बनाया है, ऐसे मुनि महाराज हैं, जो आत्मा के ध्यान के बल पर आज स्वर्ग चले जाते हैं; स्वर्ग में भी इन्द्र होते हैं अथवा लोकान्तिक होते हैं और वहाँ से सीधा मोक्षमार्ग मिल जाता है। लौट कर आ जाते हैं और मुक्ति को प्राप्त कर लेते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि आज भी मुक्ति है। जिसका सम्यग्दर्शन नहीं छूटता है, रत्नत्रय की पूर्ण भावना की थी, वह भावना वहाँ जागृत होती है। रत्नत्रय नहीं हो, तो भी उसकी भावना 'मुझे कब मिले'-इस प्रकार उसका एक-एक समय कटता रहता है और उस श्रुत की आराधना करता रहता है । इस अपेक्षा से सोचा जाए, तो आज मुक्ति नहीं, यह कहना एक प्रकार की भूल है। मुक्ति का मार्ग है, तो मुक्ति है और मुक्ति है तो आज भी राग-द्वेष का अभाव है, वह किस अपेक्षा से है, आपको समझना चाहिये। सांसारिक पदार्थों की अपेक्षा से जो किसी से राग नहीं है, द्वेष नहीं है, वह मुक्ति है। इसको आचार्यों ने बार-बार नमस्कार किया है। यह जीवन आज बन जाए, तो कम नहीं है। ये भी सिद्ध परमेष्ठी के समान वन सकते हैं। उम्मीदवार अवश्य हैं, कुछ ही समय के अन्दर उनका नम्बर आने वाला है। यह सौभाग्य आज आपको भी प्राप्त हो सकता है; लेकिन अभी आप लोगों की धारणा कुछ अलग हो सकती हैं, विश्वास अलग हो सकते हैं, रुचियाँ अलग हो सकती हैं। मोक्षमार्ग वातानुकूलित नहीं आज स्वर्ण-जैसा अवसर है, यह जीवन बार-बार नहीं मिलता है। जीवन की सुरक्षा, जीवन का विकास-उन्नयन जो कोई भी है, वे सारे जीवन का मूल्यांकन समझने वालों को मिल सकते हैं। उसको जो व्यक्ति बहुमूल्य समझता है, वह साधना-पथ पर कितने ही उपसर्ग हों, किन्तु सहर्ष उसे अपनाता है। दुःखों, परीषहों और उपसर्गों को सहर्ष अपनाने वाले मुनि हैं। प्रतिकार करने वाले मिलेंगे, लेकिन रास्ता ही इनमें से होकर है, हम क्या करें? भगवान महावीर ने जो रास्ता बताया; वे देखकर स्वयं ही वहीं से गये हैं; वह उपसर्ग और परीषहों में ही होता है, वह रास्ता कोई वातानुकूलित हो, 'एयर कण्डीशण्ड' हो, उस रास्ते से चले जाएँ, ऐसा कोई है ही नहीं। काल्पनिक रास्ता तो हो सकता है, लेकिन मोक्षमार्ग तो वही है, जो परीषह-उपसर्गों से ही प्राप्त होता है। जो उसे धारण करने के लिए तैयार हैं, उनको वह अवश्य मिलता है। उसे उत्साहपूर्वक सहर्ष सारा तन-मन-धन आ. वि. सा. अंक www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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