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मोक्ष -मार्ग / गिनिये – एक, सम्यग्दर्शन, दो, सम्यग्ज्ञान; तीन, सम्यक्चारित्र जानो, बिगड़ो मत -- यह सूत्र अपनाया जाता है । वह देखता रहेगा, जानता रहेगा, लेकिन बिगड़ेगा नहीं । लेकिन आप बिगड़े बिना रहते नहीं । देखते हैं, जानते भी हैं और बिगड़ जाते हैं, इसलिए नियति को छोड़ देते हैं । नियति के माध्यम से सारे शत्रु आत्मसमर्पित हो जाते हैं । भगवान् ने देखा वह नियत देखा, बिलकुल सही-सही देखा, वह जो कुछ पर्याय निकलती है, यह तो भगवान ने देखा था उसी के अनुसार हो गया । क्रोध- मान-मायालोभ के लिए कोई स्थान नहीं । क्रोधादि के ऊपर यदि विश्वास ज्यादा हो जाता है, तो क्रोध कर लेते हैं, तो ध्यान रखना, आप नियतिवाद के ऊपर ही क्रोध कर रहे हैं और भगवान् के ऊपर ही क्रोध कर रहे हैं; क्योंकि भगवान् ने जो देखा, उसको मान नहीं रहे हैं । क्रोध करने का अर्थ सारी की सारी व्यवस्था के ऊपर पानी फेर देना है ।
बिलकुल क्रम से पर्यायें आती हैं -- यह भगवान् और उसके जो दास हैं, भक्त; वे भी जानते हैं । लेकिन मामला कहाँ बिगड़ रहा है ? बिगड़ तो वहाँ रहा है, जिधर कषाय के वशीभूत होकर आत्मा अपने स्वरूप को भूल कर नियतवाद से स्खलित हो जाता है । जिस समय वह बिलकुल शुद्ध रहता है; नियतिवाद का अर्थ भी यह है कि अपने आप में समता के साथ बैठ जाना, कुछ भी हो, परिवर्तन सामने, उससे किसी प्रकार का हर्ष - विषाद नहीं करना । यह नियतिवाद का
तीर्थंकर : नव. दिस. ७८
नीवन
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