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________________ रोशनी का वह चेहरा युग के महान संत मुनि विद्यासागरजी तुम रोशनी के वह चेहरे हो जो हमें आध्यात्मिक सौन्दर्य की नई ऊर्जा नई ऊष्मा और नई ताज़गी की अनुपम सुषमा प्रदान करता है, जो हमारी सृष्टि में ज्ञान की एक ऐसी खूबसूरत मीनार निर्मित करता है जिससे हम अन्धकार की घाटियों से निकलकर आलोक के प्रकोष्ठ में प्रवेश करते हैं। मानवीय सौन्दर्य की गरिमा का संदर्द्धन करते हुए । सच मुनिजी, तुम इतिहास के वह स्वर्णिम परिच्छेद हो जो हमें सदैव प्रेरणा की पथरेखा भेंट करता है हमारे अज्ञानता के पिरामिडों को ध्वंस करते हुए । गति की पगडण्डियों के विशाल प्रकाश खण्ड ! तुमको कोटि-कोटि प्रणाम ! ! तुम्हारे पद चिहन हमेशा हमें नई स्फूर्ति, नई शक्ति और नया ज्ञान देते रहेंगे, हमारे जीवन को युग की अभिनव चेतना से परिपूर्ण करते हुए । तीर्थकर : नव- दिस. ७८ Jain Education International मानव की विराटता के महान् प्रतीक ! तुम्हारे दिशा-बोधक विचार तुम्हारी दृष्टि की उच्चता और तुम्हारे संकल्पों के उच्चतम आदर्श हमें एक ऐसी दुनिया में ले जाते हैं, जहाँ हम सम्पूर्ण संकीर्णताओं से ऊपर उठ कर संकुचित स्वार्थी से पृथक् होकर और सत्यं शिवं सुन्दरम् को मखमली वातावरण का सानिध्य लेकर तुम्हारे पावन, गरिमापूर्ण व्यक्तित्व को नमन करते हैं तुम्हारे दिग्दर्शित मार्ग पर चलने का संकल्प करते हुए । For Personal & Private Use Only उमेश जोशी २७ www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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