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________________ १५४1 महाकवि ब्रह्मरायमल्ल एवं भट्टारक त्रिभुवन- वात्सल्यपूर्ण आशीष : प. जयसेन जैन, जून . कीर्ति : डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, समीक्षा, प. ३५ । सितम्बर, पृ. २७। विचार-यात्रा अगले पड़ाव : पं. नाथूलाल शास्त्री, महानता की कसौटियाँ (टिप्पणी) : गुलाबचन्द जन, पृ. ३८ । 'आदित्य', नव.-दिस., पृ. ६६ । विचार-यात्रा (सन् १९४८-४६) : पं. नाथूलाल ___ महान् ज्योति/महान् तीर्थ (बोधकथा) : डॉ. शास्त्री, जन पृ. ४७ । निजामउद्दीन, मार्च, पृ. ३ (आवरण)। विद्याञ्जलि (कविता) : आशा मलैया, नव.महावीर जयन्ती स्मारिका १९७८ : प्रधान दिस., पृ. २६ । संपादक : भँवरलाल पोल्याका, समीक्षा, जून, पृ. विनीत स्वभाव के धनी : डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जून, पृ. २६ । - महावीरा एण्ड हिज टीचिज (अंग्रेजी) : विरामचिह न : राजमल जैन, समीक्षा, मितम्बर, संपा. डॉ. ए. एन उपाध्ये, डॉ. नथमल टाटिया, पं. पृ. २८ । दलसुख मालवणिया आदि, समीक्षा, मई, पृ. ३१।। विवेक ही वस्तुतः जीवित (बोधकथा) : नेमीचन्द ___ माताजी का दिव्य दर्शन; माताजी की कहानियाँ: पटोरिया, जून, पृ. ७१। सं. यशपाल जैन, समीक्षा, जन, पृ. १५४। मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास : श्रीचन्द्र विश्व की श्रेष्ठ कहानियां : सं. यशपाल जैन, चौरड़िया, समीक्षा, मई, पृ. ३३। समीक्षा, जुन, पृ. १५३ ।। मुनि कौन ? : जुलाई, पृ. ४ (आवरण)। वैशाला का भविष्य, केवल महावीर ? : वीरेन्द्रकुमार जैन, अप्रैल, पृ. ६ । मेघ पुरुष : मार्च, पृ. ४ (आदरण)। 'मैंने किया ही क्या है ?': लाला प्रेमचन्द जैन, जन, प. ३४ । वे सिर्फ दिगम्बर समाज के नहीं : मानव मुनि जून, पृ. २५। " मोक्ष : आज भी संभव : आचार्य विद्यासागर, वैदुष्य और सौजन्य का बहुमान : डॉ. गोकुल-. नव.-दिस., पृ. ३० । चन्द्र जैन, जून, पृ. २५ । युवापीढ़ी का ध्रुवतारा : अजित जैन, नव. द्रत : एक जाल, एक तट-बन्ध : पुष्कर मुनि, दिस., पृ. २५। मई, प. १३। ये कुछ नये मंदिर, नये उपासरे : डॉ. नेमीचन्द __शौच : लोभ की सर्वोत्कृष्ट निवृत्ति: पण्डितजैन, जन.-फर., पृ. ५२ । प्रवर आशाधर, नव., दिस., पृ. २८ । __ ये गड़बड़ियाँ (टिप्पणी) : विमला जैन, नव श्रमणोपासक (समता-विशेषांक) : समीक्षा दिस., प.६६ । नव-दिस. पृ. १०३। रामकृष्ण उपनिषद् : चक्रवर्ती राजगोपलाचार्य, ___ श्रावक-निरूपित गुणों की साक्षात् मूर्ति : पं. समीक्षा, जून, पृ. १५३ । रतनलाल जैन, जन, पृ. ३४।। रूढ़ि के ताले ऐसे खुलते हैं : काका कालेलकर, __ श्रीमद् भगवद्गीता : मालवी अनुवाद--निरंजन जन.-फर., पृ. ४०। जमीदार : समीक्षा, मार्च, पृ. २७ । रोशनी का वह चेहरा (कविता) : उमेश जोशी, श्रीमन्नारायण व्यक्ति और विचार, सं. यशपाल नव.-दिस, पृ. २७ । जैन, समीक्षा, अप्रैल, पृ. ४५ । लहनासिंह यदि आज जीवित होता : डॉ. कान्ति- श्रीमद रायचन्द्र अध्यात्म कोश (गुजराती): कुमार जैन, सितम्बर, पृ. ७ । संग्रा. भोगीलाल गि. शेठ, समीक्षा, नव-दिस., वन्दनीय छवि : नीरज जैन, जून, पृ. २४ । प. १०१। वह मनुष्य है : जन.-फर., पृ. ४ (आवरण)। संगीत समयसार : मूल--आचार्य पार्वदेव, संपा. अनु --आचार्य बृहस्पति, समीक्षा, अगस्त, पृ. २४ । वह लाजवाब है (शब्दचित्र) : नरेन्द्रप्रकाश जैन सदगरु की पहचान (बोधकथा): आनन्दस्वामी पृ. २०। - वाणी मुखरित हुई धरा पर (कविता) : बाब- नव.दिस., पृ. ५८ । लाल जैन 'जलज', मई, पृ. २३ । ___ संस्कृति का अभिषेक (कविता) : बाबूलाल __ वाणी मुखरित हुई. • 'महावीर भगवान् की ___ जैन 'जलज,' अप्रैल, पृ. ३ (आवरण)। (कविता): बाबूलाल जैन 'जलज', नव-दिस., सब रुचिकर : कुछ अरुचिकर (संदर्भ 'तीर्थकर' पृ. ७६। का): नरेन्द्र प्रकाश जैन, मई, प. ३० । तीर्थंकर : अप्रैल ७९/५२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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