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युवापीढ़ी का ध्रुव तारा जो चारित्र में से
दिशादर्शन करता रहा है
लेकिन यह हुआ । ज्यों घने बादलों के मध्य बिजली कौंधने - कड़कने से चूकती नहीं है, ठीक वैसे ही तरुणाई की उच्छं खलताओं के मध्य बिजली-सा कौंधता एक शिशु तरुण कर्नाटक के बेलगाँव की माटी में जन्मा ।
मैं जिस दिन पहुँचा, वे उत्तरोत्तर स्वस्थ होने लगे थे। चलने में अशक्य थे । आहार लेने लगे थे; लेकिन मानेंगे नहीं शायद आप कि इतनी गहन रुग्णता के बाद भी उनकी मुखाभा तनिक भी मुरझायी नहीं थीं ।
अजित जैन
मंगल ग्रह की ओर बेतहासा दौड़ती संस्कृति और एक निःस्पृह, अपरिग्रही, अपराजेय, मनीषी दिगम्बर साधु; कैसी विचित्रता है ! इसे विचारकवर्ग भौतिकता और अध्यात्म की संज्ञा देता है । कवीन्द्र रवीन्द्र और डॉ. राधाकृष्णन् का कहना है कि इन दोनों के बीच कोई सेतु स्थापित हो । आइन्स्टीन ने स्वयं बाह्य पदार्थों के रहस्य को जानने में बिताये अपने जीवन से ऊब थक कर डॉ. राममनोहर लोहिया को लिखे एक पत्र में इच्छा व्यक्त की थी कि 'मैं एक जन्म और चाहूँगा ताकि यह खोज सकूं कि वह कौन है, जो बाह्य पदार्थों की खोज कराता है । इस विघटित चिन्तन और विज्ञान के युग में एक धनाढ्य खानदान का २२ वर्षीय साहसी बेटा दीक्षा ग्रहण करे; इस रुग्ण, तनाव- संत्रास भरी, युवापीढ़ी के बीच नौ वर्ष की वय में नवीं कक्षा तक तालीम ले पाने वाला कोई तरुण तरुणाई को चुनौती देकर ब्रह्मचर्य व्रत धारण करे, तो सहसा बात समझ के पार उलंघ जाती है ।
...लेकिन यह हुआ । ज्यों घने बादलों के मध्य बिजली चमकने से चूकती नहीं है, ठीक वैसे ही तरुणाई की उच्छं खलताओं और निरंकुशताओं के मध्य बिजली - सा कौंधता एक युवक - शिशु कर्नाटक के बेलगाँव की पावन माटी में जन्मा । धन्य है वह ग्राम, उसकी चन्दन - जैसी माटी, वहाँ के लोग, वहाँ का पुण्य; जहाँ युवापीढ़ी के मेरुदण्ड आचार्य विद्यासागरजी जैसी महान विभूति ने जन्म लिया !
सागर से छतरपुर की ओर जाती बस, बीच में दलपतपुर, दलपतपुर से रेशन्दीगिर, यानी नैनागिरि । बस यहीं सहस्र - सहस्र युवकों की आकांक्षा के प्रतिरूप आचार्य विद्यासागर साधना, तप तथा ज्ञान के उन मुक्ता- मणियों को पाने में लगे हैं, जिन्हें पाकर मंगल ग्रह की यात्रा बचकाना साबित होती है । ज्यों आग में तपेतचे सोने की आभा देखते बनती है, वैसे ही इस आत्मवीर को देखने से आँखों को अपनी चिरनिधि मिल जाती है और वे गहन शीतलता का अनुभव करती हैं ।
तीर्थंकर : नव- दिस. ७८
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