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________________ ग्रन्थमाला स्थापित की। इस ग्रन्थमाला से संस्कृत एवं प्राकृत के लगभग ५० मूल ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ, जो परवर्ती साहित्यिक कार्यों के लिए उपजीव्य बने रहे । अन्य ग्रन्थशालाओं में जैन साहित्य प्रसारक ग्रन्थ माला, बम्बई; अनन्तकीर्ति दि. जैन ग्रन्थमाला, महाराष्ट्र सनातन जैन ग्रन्थमाला, जे. एल. जेनी ट्रस्ट ग्रन्थमाला, सेक्रेड बुक्स ऑफ दी जैन सिरीज ( आरा), जैन मित्रमण्डल ग्रन्थमाला, मूर्तिदेवी ग्रन्थ- माला आदि प्रमुख हैं; जहाँ से अनेक ग्रन्थों के प्रकाशन का क्रम आज भी जारी है । जंन श्रेष्ठिवर्ग प्राचीन जैन ग्रन्थ- प्रशस्तियों से विदित होता है कि अनेक जैन श्रेष्ठियों ने जैन कवियों एवं लेखकों के लेखन कार्य में अभूतपूर्व उत्साह एवं प्रेरणा प्रदान की है । ऐसे श्रेष्ठियों में नन्न, भरत, तक्खड, कृष्ण श्रावक, कण्ह ( कृष्णादित्य), साहू वासाधर, हेमराज, साहू नट्टल, साहू थील्हा, साहू टोडरमल, साहू कमलसिंह, साहू खेड, करमू पटवारी, कुन्थुदास, जुगराज आदि के नाम विस्मृत नहीं किये जा सकते; क्योंकि इनके विनम्र अनुरोधों एवं आश्रयदान से विशाल जैन साहित्य का निर्माण हुआ था । वर्तमान युग में भी अनेक जैन श्रेष्ठि हुए, जिन्होंने परम्परा के युगानुकूल परिवर्तन कर शिक्षा - संस्थाएँ, स्वाध्याय - मन्दिर, ग्रन्थमालाएँ एवं शोध संस्थानों की स्थापना कर जैन विद्वान् तैयार किये तथा उन्हें प्राचीन ग्रन्थों के जीर्णोद्धार, शोध, सम्पादन एवं मौलिक ग्रन्थ-लेखन में प्रेरणाएँ प्रदान कीं । ऐसे श्रेष्ठियों में सेठ हुकुमचन्द्रजी ( इन्दौर), सेठ मूलचन्द्र सोनी, सेठ भागचन्द्र सोनी ( अजमेर), श्री माणिकचन्द्रजी जे. पी. (बम्बई), रावजी सखाराम दोशी (शोलापुर), बाबू निर्मलकुमारजी ( आरा, बिहार ), सेठ लक्ष्मीचन्द्रजी (विदिशा), पन्नालालजी (अमरावती), सेठ लक्ष्मीचन्द्रजी ( बमराना, ललितपुर), सेट मोहनलालजी (खुरई, सागर), रज्जीलालजी कमरया (सागर), सिंघई कुन्दनलाल जी (सागर), श्रावक शिरोमणि साह शान्तिप्रसादजी जैन (दिल्ली), पुरणचन्द्रजी गोदीका (जयपुर), चांदमलजी पाण्ड्या ( गौहाटी), स. सिं. धन्यकुमारजी जैन ( कटनी) प्रभृति के नाम प्रमुख हैं, जिन्होंने जैन विद्वानों को तैयार करने एवं जैन साहित्य के लेखकों को प्रोत्साहित कर जिनवाणी के कार्यों को अग्रसर करने में बहुमुखी रचनात्मक कार्य किये हैं । इस प्रकार संक्षेप में मैंने अपनी अल्पबुद्धि से बीसवीं सदी के प्रारम्भ से जैन विद्या के विविध अंगों पर किये गये कार्यों का संक्षिप्त लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है । सन्दर्भ में सामग्री के अभाव अथवा सद्भाव के कारण इस निबन्ध के प्रस्तुतीकरण में बहुत-सी सामग्री का छूट जाना अथवा प्रस्तुत सामग्री में अनेक त्रुटियों का रह जाना बिल्कुल सम्भव है। उन सब के लिए मैं क्षमा-याचना करता हुआ अपने इस विचार को दुहराना चाहता हूँ कि आसन्नभूत एवं वर्त्तमान कालीन जैन विद्वानों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व सम्बन्धी एक ऐसी पुस्तिका के प्रकाशन की तत्काल आवश्यकता है, जिसमें विद्वानों के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व का तथ्यमूलक, पूर्ण एवं प्रामाणिक सचित्र इतिवृत्त वर्गीकृत पद्धति से प्रस्तुत किया जा सके । (समाप्त) Jain Education International For Personal & Private Use Only तीर्थंकर : अप्रैल ७९/३९ www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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