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बोधकथा : कल्याणकुमार 'शशि'
जंगली कहीं के !
विदेशी ने हब्शियों के प्रशान्त देश में इसमें दुश्मन से लड़ाई होती है और पहुँच कर डुग्गी पिटवायी कि हमें तुम्हारे दोनों ओर के बहुत से नौजवान रोज मारे नौजवान चाहिये, बदले में हम तुम्हें दौलत जाते हैं। और सभ्यता देंगे।
... क्या करते हो उन नौजवानों की हब्शियों की बड़ी भीड़ ने उत्सुकता लाशों का फिर तुम ?' से प्रश्न किया-क्या करोगे इन नौजवानों विदेशी ने गर्व से कहा-'हम उन्हें का तुम?'
जमीन में दफना देते हैं और अज्ञात शहीदों विदेशी ने हब्शियों के भुजदण्डों की का दर्जा देते हैं। उभरती पेशियाँ निरखते हुए उत्तर दिया- यह सुनते ही उस आदमखोर असभ्य 'आजकल हमारे यहाँ भयंकर युद्ध चल निरक्षर समुदाय ने एक स्वर में भयानक रहा है।
चीत्कार करते हुए कहा-'केवल दफनाने 'क्यों चल रहा है यह युद्ध?' के लिए इतने नौजवानों को मार देते हो '.."विश्व-शान्ति के लिए !' तुम? निकल जाओ हमारे सभ्य देश से। 'क्या होता है इस युद्ध में ?' जंगली कहीं के !!'
तीर्थकर : अप्रैल ७९/४०
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