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________________ चिकित्सा-सम्बन्धी अनेक ग्रन्थों की रचना की है, किन्तु दुर्भाग्य है कि उनके तुलनात्मक अध्ययन एवं प्रकाशन की ओर किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा है। इस क्षेत्र के दो ग्रन्थ अभी तक प्रकाशित हुए हैं। उग्रादित्य कृत 'कल्याणकारक' जिसका सम्पादन, अनुवाद श्री पं. वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, शोलापुर ने किया है । दूसरा ग्रन्थ है 'वैद्यसार संग्रह' 'जिसका प्रकाशन श्री जैन सिद्धान्त भवन, आरा से हुआ है । इनके अतिरिक्त अन्य ग्रन्थ मेरे देखने में नहीं आये । इस कोटि के साहित्य का प्रकाशन एवं शोध-कार्य अत्यावश्यक है। पत्रकारिता के क्षेत्र में पत्र-पत्रिकाओं का समाज एवं राष्ट्र के उत्थान में विशेष योगदान रहता है । वस्तुतः वे किसी समाज, वर्ग-विशेष अथवा जन-सामान्य की आशाओं एवं आकांक्षाओं को मुखरित करने की सशक्त साधन हैं। अनेक जैन विद्वानों ने समाज-सेवा हेतु इस दिशा में भी कार्य किये हैं। वर्तमान में अनेक जैन पत्र-पत्रिकाएँ निकल रही हैं । साप्ताहिक एवं पाक्षिक पत्रों में जैन सन्देश, जैनमित्र , जैन गजट, जैन बोधक, वीर, जैन दर्शन आदि तथा मासिक, त्रैमासिक, पाण्मासिक शोध-पत्रिकाओं में अनेकान्त, जैन सिद्धान्त भास्कर, सन्मतिवाणी, तीर्थंकर, गुरुदेव आदि प्रमुख हैं। यदि अन्तर्बाह्य साज-सज्जा एवं गुणवत्ता की दृष्टि से देखा जाए तो वर्तमान कालीन समस्त दि. जैन पत्र-पत्रिकाओं में तीर्थंकर' (मासिक, इन्दौर) उच्चकोटि की पत्रिका सिद्ध होती है । इसकी विशेषता यही है कि यह सामाजिक गतिविधियों पर नजर रखकर भी शोध को दिशा देने में पर्याप्त जागरूक है। अनुभव वृद्धों के लिए लेखन-प्रेरणा, शोधार्थियों के अनुभवों का सदुपयोग, नवीन प्रतिभाओं की सुप्त प्रतिभा का स्फूरण, बोधकथाओं के माध्यम से आबालवृद्ध नर-नारियों के लिए सरस एवं मार्मिक सामग्री का प्रकाशन उसकी अपनी विशेषता है। इनके अतिरिक्त भी इसकी भाषा एवं शैली बिल्कुल अपनी है । संक्षेप में कहना चाहें तो कह सकते हैं कि तीर्थंकर प्रबुद्ध एवं सुबुद्ध पाठकों की प्रतिनिधि पत्रिका है, जिसका भविष्य स्वणिम है । विश्वविद्यालयों में एवं महाविद्यालयों में प्राकृत एवं जन विद्या के अध्यापन एवं शोधकार्यरत दि. जैन विद्वान् दादा गुरुओं एवं वर्तमान गुरुओं की परम्परा ने नवीन पीढ़ी को भी अध्ययन के क्षेत्र में प्रभावित एवं प्रेरित किया है। विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में प्राकृत एवं जैन विद्या के अध्यापन एवं शोध के क्षेत्र में वर्तमान में निम्न विद्वान् कार्यरत हैं-बिहार विश्वविद्यालय के अन्तर्गत राजकीय प्राकृत शोध संस्थान, वैशाली में डॉ. लालचन्द्र जैन (छतरपुर, मध्यप्रदेश); मगध विश्वविद्यालय में डॉ. राजाराम जैन; संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में पं. अमृतलाल शास्त्री; काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में प्रो. उदयचन्द जैन एवं डॉ. गोकुलचन्द्र जैन; उदयपुर विश्वविद्यालय में डा. प्रेमसुमन जैन, डा. के. सी. सोगानी, पूना विश्वविद्यालय में प्रो. एस. एम. शाहा; मैसूर तीर्थकर : अप्रैल ७९/३७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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