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________________ ५. ब्र. जिनेन्द्र वर्णी जैनेन्द्र सिद्धान्त भारतीय ज्ञानपीठ, अपने क्षेत्र में पानीपत (पंजाब) कोश (४ खण्ड) दिल्ली सर्वप्रथम ६. पं. बालचन्द्रजी शा. लक्षणावली वीर सेवा मंदिर, , , सोरई (उत्तरप्रदेश) (दो खण्ड) दिल्ली. ७. पं. बाबूलाल जमा- श्री विद्वत् अभि- अ. भा. शास्त्री , , ____दार एवं विमल नंदन ग्रंथ परिषद्, बड़ौत कुमार सोरया आदि १९७६ हस्तलिखित अप्रकाशित ग्रन्थों की सूचियों के निर्माण क्षेत्र में साहित्य समाज के मानसिक धरातल का मापदण्ड माना गया है। जिस समाज का कोई साहित्य नहीं होता उसका न तो कोई अतीत होता है और न भविष्य । साहित्य से सामाजिक संस्कारों एवं विचार-धारा का पता चलता है । जैन समाज संख्या में कम किन्तु अपने उच्च संस्कार, उच्च विचार, राष्ट्र के प्रति निष्ठा तथा सदाशयता के बल पर आज भी गौरव के साथ जीवित है। हमारा विशाल साहित्य हमें बतलाता है कि हमारा अतीत महिमामय रहा है तथा भविष्य समुज्ज्वल है । ___ युग-युगों से जैन साहित्य विविध भाषाओं में लिखा गया , किन्तु दुर्भाग्य से उसका अधिकांश भाग नष्ट-भ्रष्ट हो गया । जो कुछ सुरक्षित है उसकी मात्रा भी कम नहीं, किन्तु उसका अभी पंचमांश भी प्रकाशित नहीं हो पाया है। किसी भी स्वस्थ एवं समृद्ध समाज के लिए यह लक्षण अच्छा नहीं । सुनते हैं कि यूरोप, अमेरिका, मिश्र एवं अन्य अरब देशों ने हस्तलिखित ग्रन्थों को राष्ट्रीय निधि मानकर उसका समूचा प्रकाशन करा लिया है, किन्तु एशिया महाद्वीप में अभी साहित्यिक गौरव की भावना का स्फुरण नहीं हो पाया है। उसमें भी भारत तथा भारत में भी जैन समाज सब से अधिक पिछड़ा हुआ है। हमारा अधिकांश साहित्य अभी अंधेरी कोठरियों में ही भरा पड़ा है । उसका प्रकाशन एवं मूल्यांकन होना अत्यावश्यक है। यह प्रक्रिया श्रम एवं समय-साध्य है, किन्तु क्रमशः ही सही, यह कार्य होता रहना चाहिये । तत्काल आवश्यकता है, उसके सूचीकरण की। वर्गीकृत ग्रन्थ-सूचियों के तैयार हो जाने से शोध-कार्यकर्ताओं को अपने शोध-विषय के निर्धारण में सहायता मिलेगी। ग्रन्थ-सूचियों के निर्माण में सर्वप्रथम कार्यारम्भ किया--पं. नाथूराम प्रेमी ने । उन्होंने 'जैन हितैषी' के माध्यम से 'दि. जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकर्ता' के नाम से बम्बई एवं आसपास के शास्त्र-भण्डारों में सुरक्षित हस्तलिखित ग्रन्थों की सूचियाँ प्रकाशित की। उसी के आस-पास डॉ. हीरालाल जैन की सहायता से राय बहादुर हीरालाल ने 'कैटलॉग ऑव ओल्ड मेन्युस्क्रिप्ट्स इन द सी. पी. एण्ड बरार' नामक ग्रन्थ में कारंजा, नागपुर तथा बुन्देलखण्ड के कुछ हिस्सों में प्राप्त कुछ जैन ग्रन्थों की विवरणात्मक सूचियाँ प्रकाशित की। तीर्थंकर : अप्रैल ७९/३५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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