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सन्दर्भ : दिग. जैन पण्डित
जैन विद्या : विकास-क्रम/कल, आज (८)
0 अपभ्रंश-साहित्य 0 हिन्दी-साहित्य 0 कोश-साहित्य 0 हस्तलिखित अप्रकाशित ग्रन्थों की सूचियों का निर्माण 0 विज्ञान एवं गणित 0 चिकित्सा ० पत्रकारिता 0 विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में जैन विद्या का अध्ययनअनुसन्धान 0 समाज-सेवा 0 श्रेष्ठिवर्ग।
। डा. राजाराम जैन
अपभ्रंश-साहित्य के क्षेत्र में
भाषा-वैज्ञानिकों ने अपभ्रंश-भाषा को आधनिक बोलियों, या भाषाओं की जननी माना है। वैसे अपभ्रंश में बौद्ध एवं वैदिक कवियों ने भी साहित्य-रचनाएँ की हैं, किन्तु परिमाण में वे जैन अपभ्रंश-साहित्य की अपेक्षा नगण्य ही हैं। दि. जैन कवियों ने अपभ्रंश-भाषा में छठवीं सदी से लेकर १६वीं-१७वीं सदी तक सहस्रों रचनाएँ कीं। इन अपभ्रंश-ग्रन्थों की प्रमुख विशेषता यह है कि इनके आदि एवं अन्त भाग में विस्तृत प्रशस्तियाँ अंकित हैं। जिनके माध्यम से तत्कालीन राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियों पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। महाकवि विबुध श्रीधर (१३वीं सदी) की एक ग्रन्थ-प्रशस्ति में दिल्ली का आँखों-देखा जैसा हाल वर्णित है वैसा अन्यत्र देखने में नहीं आया। महाकवि रइधू ने ग्वालियर के तोमरवंशी राजाओं, वहाँ के जैन नगर-सेठों एवं समकालीन जैन समाज का जितना सुन्दर वर्णन किया है, वैसा अन्यत्र बहुत कम देखने में आया। ग्वालियर-दुर्ग की जैन मूर्तियाँ कैसे बनीं, इसका वृत्तान्त रइधू-साहित्य-प्रशस्तियों में मिल जाता है । महाकवि पुष्पदन्त ने महामन्त्री नन्न एवं भरत का जितना प्रामाणिक वर्णन किया है उतना अन्यत्र नहीं मिलता। महाकवि धवल ने अपने रिटणेमिचरिउ की प्रशस्ति में जिन अनेक साहित्यकारों एवं कवियों का उल्लेख किया है, यदि खोजने पर उन सभी के साहित्य की उपलब्धि हो जाती है, तो उससे हमारे इतिहास को नया आलोक मिल सकता है।
इतना महत्त्वपूर्ण साहित्य सदियों तक अन्धेरी कोठरियों में बन्द पड़ा रहा, किन्तु हम आभारी हैं पं. नाथूराम प्रेमी, पं. जुगल किशोर मुख्त्यार, डॉ. हीरालाल आदि विद्वानों के, जिन्होंने इस ओर ध्यान दिया और 'जैन-हितैषी', 'अनेकान्त' एवं अन्य साधनों से विद्वज्जगत् को इन ग्रन्थों का परिचय दिया।
पं. नाथूराम प्रेमी ने अपभ्रंश के महाकवि स्वयम्भू तथा उनके पउमचरिउ का विस्तृत परिचय देकर अन्वेषक-विद्वानों का इस महनीय कृति की ओर सर्वप्रथम ध्यानाकर्षित किया।
तीर्थकर : अप्रैल ७९/३०
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