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________________ सामान्य प्रजाजन दूसरी ओर एकजुट कटिबद्ध हैं। बरसों हो गये, प्रजा की इच्छा के विरुद्ध राज्य ने उस पर युद्ध थोप रक्खा है । प्रजा युद्ध नहीं चाहती, सैनिक युद्ध नहीं चाहते, यह केवल सत्ता- सम्पत्ति के लोभी गृद्धों का आपसी युद्ध है । और निर्दोष प्रजा उसमें पिसते ही जाने को मजबूर है । वैशाली के हजारों-लाखों मासूम जवान इस युद्ध की आग में झोंक दिये गये हैं । हम इस युद्ध को अब और नहीं सहेंगे । रक्त क्रान्ति अनिवार्य है, भगवन् ! हम इन राजन्यों का ख़न वैशाली की सड़कों पर बहा कर, अपने मासूम खून का बदला इनसे भुना कर रहेंगे । आज्ञा दें भगवन्, तो रक्त क्रान्ति की घोषणा कर दूं 'निश्चय ही रक्त क्रान्ति अनिवार्य है, आयुष्यमान लिच्छवि । रक्त का प्रकृत प्रवाह अवरुद्ध हो गया, तो रक्त क्रान्ति होगी ही । सड़े और ग्रंथीभूत रक्त का बह जाना ही प्राकृत है, मंगल है। सारे जम्बूद्वीप के रक्त में जड़ सुवर्ण की गाँठें पड़ गयी हैं । सारी मनुष्य जाति का नाड़ीमण्डल लोभ के मवाद से टीस रहा है । एक प्रकाण्ड अर्बुद-ग्रंथि (कैंसर) से सत्ता का चैतन्य केन्द्र जड़ीभूत हो गया है । अपना ही रक्तदान करके, सत्ता को इस महामृत्यु से मुक्त करो, आयुष्यमान् । आत्माहुति की यज्ञ - ज्वालाओं में ही, यह वज्र गल सकेगा । इसी से कहता हूँ, रक्तक्रान्ति अनिवार्य है, देवानुप्रिय । यदि अवरुद्ध रक्त, क्रान्त न हो, निष्क्रान्त न हो, तो अतिक्रान्ति कैसे हो; अतिक्रान्ति न हो, तो उत्क्रान्ति कैसे हो; मुक्ति - पन्थ पर अगला उत्थान कैसे हो ? 'जनगण सुने, कल वैशाली में रक्त क्रान्ति का सूत्रपात हुआ । महावीर के उत्तोलित रक्त ने पूर्व द्वार के स्वागत समारोह को नकार दिया । वह वैशाली के बन्द और वज्र - जड़ित पश्चिमी द्वार पर टकराया। मेरे सहस्रार के सूर्य मण्डल को भेद कर उस रक्त ने दिक्काल पर पछाड़ खायी। और मेरे एक दृष्टिपात मात्र से सत्ता की साँकलें तोड़ कर वे बरसों के वज्रीभूत कपाट स्वतः खुल गये । और उसी के अनुसरण में उत्तरी और दक्षिणी द्वार भी आपोआप खुल पड़े। अलक्ष्य में एक प्रलयंकर नीरव विस्फोट हुआ । जन-जन उससे स्तब्ध हो गया । वैशाली के लाखों सैनिक परकोट छोड़ कर, शस्त्र त्याग कर, महावीर के नगर- विहार का अनुगमन कर गये। आज वैशाली के चारों द्वार सारे संसार के लिए खुले हैं। तमाम परचक्रों और आक्रमणकारियों के लिए खुले हैं। परकोटों तले शस्त्र धूल चाट रहे हैं। वैशाली के तमाम राजा और सामन्त अपनी तलवारें त्याग कर ही इस समवसरण में प्रवेश कर सके हैं। केवल रोहिणी एक तीर ले कर यहाँ आयी : अपनी ही छाती उससे छिदवा देने के लिए। लेकिन वह तीर व्यर्थ हो कर शून्य में टँगा रह गया । रोहिणी के हृदय का रक्त आपोआप ही फूट आया। वह माँ के प्यार का रक्त है, वह अर्हत् महावीर के हृदय का रक्त है । वह फुट कर कमल ही हो सकता था । यही महावीर की वैश्विक रक्त क्रान्ति है । महावीर के इस रक्त कमलासन को कौन Jain Education International For Personal & Private Use Only तीर्थंकर : अप्रैल ७९/२१ www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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