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________________ अपने हृदय पर धारण करेगा ? आने वाली रक्त-पिच्छिल शताब्दियों में कौन इस रक्त-क्रान्ति का नेतृत्व करेगा ? . .' एक अफाट मरुस्थल की भयंकर निरुत्तरता में श्री भगवान के शब्द काल और इतिहास के आरपार अप्रतिहत गंजते चले गये। उन्हें प्रतिसाद देने वाली क्या कोई वाणी पृथ्वी पर विद्यमान नहीं है ?' हठात् रोहिणी का रुदनाकुल, प्रेमाकुल कण्ठ-स्वर सुनायी पड़ा : 'सृष्टि और मनुष्य की माँ हूँ मैं, हे परमपिता त्रिलोकीनाथ ! भावी के सारे युद्धों और रक्त-क्रान्तियों को सहँगी अपनी इस छाती पर। और सारे रक्तपातों और हत्याओं के बीच भी सर्वकाल में तुम्हारे चरणों के कमल मेरे वक्षोजों से फूटते रहेंगे। और उनमें अनाथ, पराभत और घायल मानवता को सदा प्यार की परम शरण गोद प्राप्त होती रहेगी। हर बार वहाँ से उठ कर मनुष्य का आत्महारा बेटा उत्क्रान्ति और उत्थान के उच्च से उच्चतर शिखरों पर आरोहण करता जाएगा। श्री भगवान के पग-धारण को मेरी यह छाती सदा इतिहास के श्लों प्यार बिछी रहेगी। मैं नारी हूँ, भगवन् ! मैं माँ हूँ-सकल चराकर की, यह मेरी परवशता है। समर्पित हूँ प्रभु, मुझे अंगीकार करें, मुझे अपनी सती बना लें। मुझे पार मेश्वरी दीक्षा दे कर, अपनी सहधर्मचारिणी बना लें।' 'तुम अनन्तों में चिरकाल सत्ता की परम सती के ध्रुवासन पर बिराजोगी, रोहिणी । भगवती चन्दनवाला मनुष्य की माँ के भावी पथ का अनुसन्धान करें।' एक अव्याहत मौन लोकान्तों तक व्याप गया । और औचक ही महासती चन्दनबाला के करुण-मधुर कण्ठ की सान्द्र वाणी उच्चरित हुई : 'आर्यावर्त की महा चण्डिका रोहिणी, सन्यासिनी नहीं होगी। वह सत्यानाशिनी होकर, भव-त्राण में चिर काल नियुक्त रहेगी। वह भगवान की महाशक्ति है। अन्धकार की दानवी शक्तियों की मुण्डमाला अपने गले में धारण कर, वह अनाथ सृष्टि को सदा अपनी सर्ववल्लभा छाती में अभय और शरण देती रहेगी। वह सहस्रशीर्ष, सहस्राक्ष, सहस्रबाहु, महस्रपाद हो कर रहेगी। अपने हज़ारों हाथों में, हजारों अस्त्र-शस्त्र धारण कर, वह जगत को निःशस्त्र कर देगी। अपने हजारों पैरों से असुर-वहिनियों का निर्दलन करती हुई, वे भगवती अहिंसा का साक्षात विग्रह हो कर चलेंगी सर्वकाल इस पृथ्वी पर । नारी का दूसरा नाम ही अहिंसा है। माँ हिंसक कैसे हो सकती है ! युद्धाक्रान्त वैशाली के लक्ष-कोटि नर-नारी तुम्हारी भवतारिणी, सुन्दर बाहों में शरण खोज रहे हैं, देवि! तुम्हारी दायीं भुजा में वैशाली का उत्थान है, तुम्हारी बायीं भुजा में वैशाली का पतन है। वैशाली के सत्ताधारी तुम्हें पहचान सकें, तो वैशाली के संथागार में आदि प्रजापति वृषभनाथ का धर्म तीर्थकर : अप्रैल ७९/२२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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