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________________ गेट अप, कागज छपाई आदि की दृष्टि से पुस्तक अनुपम है। जैन सेन्टर का यह प्रयास अभिनन्दनीय एवं अनुकरणीय है। परीलोक, बुद्धिलोक (बालोपयोगी कहानी-संग्रह) : मुनि सुमेरमल ; गतिमान प्रकाशन, १२३७, रास्ता अजबघर, जयपुर-३०२ ००३; प्रत्येक का मूल्य-दो रुपये पचास पैसे; क्रमश: पृष्ठ-९२, १०८; क्राउन-१९७८ । आचार्य श्री तुलसी के 'आशीर्वचन' से प्रारंभ होने वाली दोनों पुस्तकों में क्रमश: २१ और १९ सचित्र कहानियों का समावेश किया गया है। बाल-मनोविज्ञान की अद्यतन शैली में तो ये कहानियाँ नहीं हैं (रूढ़ शैली को अपनाया गया है) फिर भी बाल साहित्य के अभाव की पूर्ति का एक रचनात्मक प्रयास है। अन्तर्राष्ट्रीय बाल-वर्ष में नैतिक शिक्षामूलक पुस्तकों के अन्तर्गत इनका उपयोग हो सकता है। __ अपने स्वर-अपने गीत : मुनि महेन्द्रकुमार 'कमल'; श्री शीतल जैन साहित्य सदन, मांडलगढ़ (भीलवाड़ा); मूल्य-उल्लेख नहीं; पृष्ठ १७२; क्राउन-१९७८। प्रस्तुत पुस्तक आराधना, संबोधना, स्तवना, जागरणा, रंगीली रचना और राजस्थानी सरगम नामक खण्डों के अन्तर्गत फिल्मी तर्ज़ पर १७९ गीतों का संकलन है। लोकोपयोगिता की दृष्टि से ये गीत प्रभावित करनेवाले हैं। श्रीमद भगवद्गीता (मालवी-अनुवाद) : निरंजन जमींदार, गीता समिति प्रकाशन, बड़ा रावला, जूनी इन्दौर, इन्दौर ४५० ००४; मूल्य-दो रुपये पचास पैसे; पृष्ठ-१२२; पॉकेट-१९७८ । अनुवादक के शब्दों में प्रस्तुत पुस्तिका मालवी बोली में और शायद राजस्थानी, बन्देलखण्डी आदि बोलियों में भी गीता का पहला अनुवाद है। कविवर श्री भवानीप्रसाद मिश्र को इससे गीता का बुन्देलखण्डी में अनुवाद करने की प्रेरणा मिलने का उल्लेख अनुवादक ने किया है। अनुवादक ने अपने को गीता का अधिकारी नहीं मानकर इसे एक बाल प्रयत्न कहा है। गीता का बौद्धिक दृष्टि से अनुशीलन करने वालों में श्री निरंजन जमींदार का नाम उल्लेखनीय है। उनका यह प्रयास स्वागतार्ह है। आचार बनाम विचार (लेखों का संग्रह) : स्वराज्य का अर्थ (उदबोधक विचार) : मो. क. गांधी; सस्ता साहित्य मंडल, कॅनाट सर्कस, नई दिल्ली ११०००१; प्रत्येक का मूल्य-दो रुपये ; क्रमश: पृष्ठ-३२, ६८; रॉयल, क्राउन १९७८ । पहली पुस्तक में महात्मा गांधी के उन १७ लेखों को संकलित किया गया है, जो उन्होंने 'हिन्दी नवजीवन' और 'हरिजन सेवक' में संपादकीय टिप्पणियों के रूप में लिखे थे। इनमें व्यक्त विचार आज भी चरितार्थ करने के लिए उद्बोधक हैं। दूसरी पुस्तक में गांधीजी के सपनों का भारत कैसा हो? -विषयक विचारों का सार-संक्षेप है। इसमें ऐसी समस्याओं के समाधान प्रस्तुत किये गये हैं, जो आज भी अनुत्तरित हैं। 'मण्डल' की रीति-नीति के अनुरूप दोनों ही पुस्तकें ऐसी हैं, जिनका व्यापक प्रसार-प्रचार तथा उपयोग अपेक्षित है। -प्रेमचन्द जैन ०० तीर्थंकर : मार्च ७९/२७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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