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कसोटी।
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ट्रेजर्स ऑफ जना भण्डार्स (अंग्रेजी):संपादक-उमाकान्त पी. शाह; एल. डी. इन्स्टीटयूट ऑफ इण्डोलॉजी, अहमदाबाद-९; मूल्य-दो सौ पचास रुपये; पृष्ठ ६०+ १००; डिमाई १/४, १९७८ ।
आलोच्य ग्रन्थ मात्र एक ग्रन्थ ही नहीं है अपितु भारतीय इतिहास की संरचना की एक मजबूत ईंट है। मध्ययुग की कला-गतिविधियों का इतना वैज्ञानिक विवरण अभी अनुपलब्ध है। प्रस्तुत ग्रन्थ में पाण्डुलिपियों की (१ से १०० पृष्ठों तक) जो विस्तृत सूचियाँ दी गयी हैं और जिनके आकलन, वर्गीकरण, एवं व्यवस्थापन में जो परिश्रम, संपदा और शक्ति लगी है, वह उल्लेखनीय है। पाण्डुलिपियों के संग्रहों के लिए जैनों में 'चितकोष, भारती भाण्डागार, सरस्वती भाण्डागार, सरस्वती भण्डार' आदि परम्परित अभिधान प्रचलित हैं। इन भाण्डारों में अकूत सामग्री सदियों से व्यापक-व्यवस्थित अध्ययन-अनुसन्धान की प्रतीक्षा कर रही है। प्रस्तुत ग्रन्थ उस दिशा में एक प्रशस्त पग है। ग्रन्थ में जो तालिकाएँ दी गयी हैं उनके सात वर्ग हैं--ताड़पत्रीय, लघुचित्रयुक्त, चित्रलिपित, ग्रन्थावरण, सचित्र, पट-मन्त्र-तन्त्र इत्यादि; कांस्य तथा अन्य कला-वस्तु। इन तालिकाओं के अलावा ग्रन्थ में १६ रंगीन प्लेटें तथा ८२ सादा प्लेटें भी दी गयी हैं। अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के कलामर्मी एवं पुरातत्त्वविद् श्री उमाकान्त पी. शाह ने प्राप्त सामग्री का सुविध मन्थन-परिमन्थन किया है और पश्चिम भारतीय कला-क्षेत्र की कई अजानी विशिष्टताओं को उजागर किया है। प्राक्कथन स्वयं में एक मौलिक कृति है। गुजरात सरकार ने इसका संपूर्ण व्यय-भार वहन कर, एवं इन्स्टीट्यूट ने इसके प्रकाशन का दायित्व निभाकर जो ऐतिहासिक कार्य किया है वह न केवल गर्व-गौरव का विषय है वरन् एक ऐसा बीजांकुर है जो आगे चल कर एक विशाल वृक्षराजि का आकार ग्रहण करेगा। ग्रन्थ संकलनीय, मननीय, ज्ञानवर्द्धक, सौन्दर्याभिरुचि-संपन्न, मनोज्ञ, नयनाभिराम है तथा शोध के कई नूतन क्षितिज उद्घाटित करता है। इस साफ-सुथरे और कलात्मक प्रकाशन के लिए इन्स्टीट्यूट साधुवाद की पात्र है।
प्राकृत स्टडीज (१९७३, प्रोसीडिंग्ज ऑफ सेमीनार ऑन); संपादक-डॉ. के. आर. चन्द्रा; वही; मूल्य-चालीस रुपये; पृष्ठ ३२+१८४; रॉयल १/४, १९७८ ।
__समीक्ष्य शोधपत्र-संकलन गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद के प्राकृत विभाग के तत्त्वावधान में मार्च १९७३ में आयोजित 'प्राकृत अध्ययन संगोष्ठी' का कार्य-विवरण है, जो मात्र विवरण ही नहीं है वरन् एक ऐसा सन्दर्भ है जो आनेवाली अनुसन्धान-पीढ़ी के लिए बहुमूल्य मार्गदर्शन सिद्ध होगा। इसमें कुल २५ शोधपत्र
तीर्थकर : मार्च ७९/२५
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