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लगता है हमारा वह 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' का सिद्धान्त मात्र प्रवचनों में सुनने के लिए है, स्वधर्म का गौरव-गान करने के लिए है, आत्मा के उत्थान के लिए नहीं, सेवा के लिए नहीं।
— सचमुच आज आवश्यकता है, ऐसे युग-प्रवर्तक आचार्यों की जो देश, काल और क्षेत्र की उचित गति को परख कर गतानुगतिकता के संकीर्ण घेरे में प्रवाहित अहिंसा की प्राणदायिनी सलिला को रूढ़ियों की जीर्ण-शीर्ण प्राचीरों से मुक्त कर विशाल रूपा गंगा का 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' वाला रूप दें। पर ऐसा वही कर सकता है, जिसने सुदूर समुद्र के आह्वानों को सुना है, समझा है और पूर्णतः प्रस्तुत है उस तक पहुँचने के लिए अपना सर्वस्व होम कर ।
राजकुमारी बेगानी, कलकत्ता
'तीर्थकर' के सम्बन्ध में तथ्य-सम्बन्धी घोषणा प्रकाशन-स्थान
६५, पत्रकार कॉलोनी
कनाडिया रोड, इन्दौर-४५२००१ प्रकाशन-अवधि
मासिक मुद्रक-प्रकाशक
प्रेमचन्द जैन राष्ट्रीयता
भारतीय पता
६५, पत्रकार कालोनी
कनाड़िया रोड, इन्दौर-४५२००१ संपादक
डॉ. नेमीचन्द जैन राष्ट्रीयता
भारतीय पता
६५, पत्रकार कॉलोनी
कनाड़िया रोड, इन्दौर-४५२००१ स्वामित्व
हीरा भया प्रकाशन ६५, पत्रकार कॉलोनी
कनाड़िया रोड, इन्दौर-४५२००१ मैं, प्रेमचन्द जैन, एतद् द्वारा घोषित करता हूँ कि मेरी अधिकतम जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपर्युक्त विवरण सत्य है।
प्रेमचन्द जैन १०-२-१९७९
प्रकाशक
तीर्थंकर : मार्च ७९/२४
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