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वे उसके प्रति इतनी अकरुण हो उठी हैं। एक गम्भीर वेदना ने क्लिष्ट कर डाला उसके अन्तर को। नहीं, वह अवश्य ही सूर्यातापना करेगी सुभूमिभाग उद्यान में । फिर?
फिर क्या होगा - यह कहाँ जानती थी सुकुमारिका।
निषेधाज्ञा की उपेक्षा कर सुभूमिभाग उद्यान में आयी सुकुमारिका सूर्यातापना के लिए। सूर्याभिमुख होकर लीन हो गई आत्मानुचिन्तन में।
समय व्यतिक्रान्त हुआ-किन्तु सुस्थित नहीं हुआ सुकुमारिका का मन ।
क्रमशः निष्प्रभ होता गया अपराह्न का सूर्य । निकटतर होता गया सन्ध्या का अन्धकार । कैसी नीलाभ-सी होती गई द्रुमलताएँ। सहसा उसे लगा जैसे कोई उससे प्रश्न कर रहा है-'तुम्हें क्या चाहिये तपस्विनी ?'
मुझे क्या चाहिये ? मन-ही-मन चिन्तन किया सुकुमारिका ने। ठीक पर मुहूर्त में ही उसे दिखाई दीं दो सुन्दर आँखें जो कि ज्योत्स्ना-समुद्र-तरंग की भाँति विपुल प्रणयोच्छल आह्वान से आलोड़ित थीं। मुग्ध हो उठी सुकुमारिका।
'तुम्हें क्या चाहिये तापसिका' - फिर वही-प्रश्न सुनायी पड़ा। __मुझे क्या चाहिये ? ओष्ठानों पर जो कुछ आना चाह रहा था उसे लौटा लिया था सुकुमारिका ने-नहीं, उसे नहीं चाहिये निर्वाण-नहीं चाहिये मुक्ति। उसे चाहिये स्वप्न-सिहर दिवस, मरूद्यानों की स्निग्धता, जीवन के क्षणिक आनन्द का अमृत।
'तुम्हें क्या चाहिये श्रमणिका ?' - तृतीय बार फिर वही प्रश्न ।
'कौन प्रश्न कर रहा है ?"-सुकुमारिका सोचने लगी। उसे देखने के लिए आँखें खोली उसने; किन्तु कोई तो नहीं था उसके समीप । · · · तभी देखा दूर सप्तपर्ण तरु की छाया में एक प्रेमिक की क्रोड़ को सुशोभित किये बैठी थी एक वारांगना । उसकी उमिल केशराशि को सहेज रहा था एक दूसरा प्रेमिक तीसरा वीजनपत्र आन्दोलित कर उस वारांगना के स्वेदांकुर-व्यथित कपोल पर समीर संचारित कर रहा था। चतुर्थ नवीन किसलय वन्त को कुसुमरस में अनुलिप्त कर उसके वक्ष-पट पर पत्रलिखा अंकित कर रहा था। पंचम अनुराग के आवेग में उसके पदद्वय निज कोड़ में लेकर निपुण शिल्पी की भाँति उसे अलक्तराग से रंजित कर रहा था।
सद्यः विकसित पुष्प की भाँति सुस्मित हो उठे साध्वी सुकुमारिका के ओष्ठाधर। वह किसी भी प्रकार उस दृश्य से नेत्र विलग न कर पायी। मन-ही-न बोल उठी - 'सूर्यातपना कर यदि मैं कोई पुण्य-संचय कर सकी हूँ तो मझे भी परवर्ती जीवन में प्राप्त हों इसी प्रकार पंच प्रिय पति और मैं भी उनके द्वारा इसी प्रकार संवद्धित होऊँ।
(विशष्ठि शलाका पुरुष चरित्रान्तर्गत द्रौपदी का पूर्व जीवन; बांग्ला से अनुवाद : श्रीमती राजकुमारी बॅगानी)
तीर्थंकर : मार्च ७९/१३
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