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साधना-भ्रष्ट
कोई संकल्प पूरा नहीं होता ।
कितनी निष्ठा से
करता हूँ प्रारम्भ अनुष्ठान का, शब्द - फूल; प्रेम-दीप, भाव-गन्ध
करता हूँ प्रबन्ध
पूजा के सामान का । पर जाने कहाँ हो जाता है प्रमाद सिद्धि का चक्र पूरा नहीं होता कोई संकल्प.....
जिस लक्ष्य की दिशा में
चलता हूँ कदम-कदम;
वही मुझ से दूर-दूर
और दूर जाता है । जितनी भी अभ्यर्थना करता हूँ ज्योति की अन्धकार नयनों से
घूर घूर जाता है ।
जाने कैसे
छूट जाती है लय गीत की
सप्तक 'संवाद' का
कोई संकल्प
पूरा नहीं होता ।
पूरा नहीं होता
D दिनकर सोनवलकर
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