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इन्दौर डी.एच./६२ म.प्र.
लाइसेन्स नं. एल-६२ जनवरी-फरवरी १९७९ (पहले से डाक-व्यय चुकाये बिना भेजने की स्वीकृति प्राप्त)
वह मनुष्य है
बोलना दस प्रकार का है।
जो संताप को जनमता है, कर्कश है।
जो हृदय को खण्ड-खण्ड करता है और बज्र की तरह कठोर है, परुष है।
जो उद्वेगजनक है, कट्व है। जो धमकियों से भरा है, निष्ठुर है।
जो अपशब्दात्मक और कोपजनक है, परकोपी है।
जो शील, बीर्य और गणों का विनाश करता है, छेदकर है।
जो अपनी कठोरता के कारण हड्डियों के मध्य तक को कृश करता है, वह
मध्यकश है।
जो अपने महत्त्व को स्थापित कर अन्यों की अवमानना करता है, वह
अतिमानी है।
शीलों को खण्डित करने वाला और मैत्री के अनबंधों को छिन्न-भिन्न करने
वाला है, वह अनयंकर है।
जो प्राणियों के प्राण हरण करने वाला है वह भहिंसाकर है।
जो इन्हें छोड़ हित, मित और असंदिग्ध बोलता है, वह मनुष्य है।
श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
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